Thursday 11 February 2016

इंसान कम ही बचे हैं ...




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देकर 
दो निवाले 
दान में !
कुछ 
पुण्य के 
अरमान में !

चल पड़ा 
इनसान यूँ !
पल रहा 
अभिमान यूँ !

हाय / हम 
देना
 प्रकृति से 
सीख लेते !
निरुपाय हम 
कब तलक
इन्सान ही से
भीख लेते !

इक सदी से 
चल रहा 
रोना 
गरीबी का सतत !
कौन / किसको 
है मिटाता ?
पास किसके 
इतना  'बखत ' !

चल रहा 
जबसे धरा पर 
अधिकार का 
अभियान है !
इन्सान 
कम ही बचे हैं 
गरीबों की नसल
बचे धनवान हैं !

देना  महज 
पाप धोने के लिए है !
लेना /सतत
और लेने के लिए है !

हे प्रभु ,
संसार में बस
दो ही रिश्ते बचे हैं !
क्या ये इंसान
सचमुच 
तुमने ही रचे हैं ?
_______________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

3 comments:

  1. Satye vachan, sirf garib evm dhanwan --do hi jaati bachi hasin iss swarthi sansar me . Neki daan ka koi jarurat ya jajba hi nhi, lene wale bina ahsaan ke satut tatpor aur dene walo ka Ishwer ko khush kerne ka dhong . Insaniyut tou dhoonde por bhi nhi milti ..JHUKAYE KHUD KO NA JAB TAK; JHUKANA SAR HAI BEIMANI;; TARK KER DE KHUDI KO TOU KHUDA FIR NAZAR AATA HAI

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