Tuesday, 6 August 2013

प्राण

चोका : प्राण 
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अंधियारों  में ,
रौशनी की तरह ,
आती  हैं यादें !

सुने से आकाश में ,
उड़ता  हुआ ,
मनचला परिंदा !

थकता नही ,
क्यूंकि प्राण अमर है !
ये तन ,तो घर है !
------------------------------------------ डॉ . प्रतिभा स्वाति

6 comments:

  1. o manchali kaha chali.........

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    1. अमिनातिओं बोलते नहीं / j d

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  2. Bahot sundar""""".......:)

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  3. बहुत लाजवाब ... पहला और अंतिम हाइकू तो कमाल का है ... स्पष्ट, छोटा और सार्थक ...

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