Friday 19 February 2016

यमाताराजभानसलगा












______________________ याद आया कुछ ? कक्षा  ६ , विषय हिंदी , व्याकरण की किताब का छंद वाला पाठ . तब भी कठिन था और अब भी कठिन है :)
----------- ' यमाताराजभानसलगा ' ये आठ गण याद करने का अचूक मन्त्र / मुझे याद है और इसी के दम पर न सिर्फ उन आठ गणों के नाम बल्कि उनमे जो लघु दीर्घ का क्रम है वो भी :) आपको बता दूँ की ३ मात्रा के समूह को 'गण' कहते हैं ! मात्रिक या वर्णिक छंद की रचना करनी हो तो , बिना गणना के काम नहीं चलता .
------------ इस सन्दर्भ में उपलब्ध जानकारी , इसी post के कमेंट्स में देती रहूंगी , आज इतना ही 
____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति   

11 comments:

  1. अक्षरों की संख्या एवं क्रम ,मात्रा गणना तथा यति -गति के सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पघरचना ‘ छंद ‘ कहलाती है !

    मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द दो प्रकार के होते हैं – मात्रिक छंद और वर्णिक छन्द

    मात्रिक छंद – मात्राओं की संख्या को ध्यान में रखकर रचे गये छंद मात्रिक छन्द कहलाते हैं।

    वर्णिक छंद – वर्णों की संख्या को ध्यान में रखकर रचे गये छंद वर्णिक छन्द कहलाते हैं।

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  2. ----------------------------
    वर्ण, मात्रा, गति, यति, लय और चरणान्त सम्बन्धी नियमों से युक्त रचना को छन्द कहते हैं।
    वर्ण – वर्ण (अक्षर) दो प्रकार के होते हैं – दीर्घ अथवा गुरु और ह्रस्व अथवा लघु। गुरु को “ऽ” तथा लघु को “।” चिह्नों से प्रदर्शित किया जाता है।
    मात्रा – अ, इ, उ, ऋ की मात्रा को एक और आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं तथा अः की मात्रा को दो मात्रा मानी जाती है। जैसे “राम” में प्रथम वर्ण “रा” गुरु अर्थात दो मात्रा वाली है और द्वितीय वर्ण “म” लघु अर्थात एक मात्रा वाली है अतः “राम” शब्द में कुल तीन मात्राएँ हुईं। संयुक्ताक्षर में प्रथम वर्ण की दो मात्राएँ मानी जाती हैं जैसे “मुक्त” में प्रथम अक्षर के लघु होते हुए भी उसे गुरु माना जावेगा।
    लय – चरणों का के अन्तिम व्यञ्जन और मात्रा की समानता को लय या तुक कहा जाता है जैसे – “मांगी नाव न केवट आना। कहहिं तुम्हार मरमु मैं जाना॥” में “आना” और “जाना”।
    गति – छन्दों की मात्राओं अथवा वर्णों में जो प्रवाह होता है उसे गति कहते हैं।
    यति – छंदों को गाते समय बीच में जो हल्का सा रुकाव होता है उसे यति कहा जाता है।
    ____________________________________

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  3. ____________________________
    गण – तीन मात्राओं के समूह को गण कहा जाता है। गण आठ प्रकार के होते हैं –
    गण का नाम लक्षण चिह्न उदाहरण
    यगण प्रथम वर्ण लघु, शेष गुरु ।ऽऽ दिखावा
    मगण तीनों वर्ण गरु ऽऽऽ पाषाणी
    तगण प्रथम दो गुरु अंतिम लघु ऽऽ। तालाब
    रगण प्रथम और अन्तिम गुरु बीच का लघु ऽ।ऽ साधना
    जगण प्रथम और अन्तिम लघु बीच का गुरु ।ऽ। पहाड़
    भगण प्रथम गुरु शेष लघु ऽ।। भारत
    नगण तीनों वर्ण लघु ।।। सरल
    सगण प्रथम दो लघु अन्तिम गुरु ।।ऽ महिमा
    गणो के नामों और लक्षणों को याद रखने के लिए सूत्र है – यमाताराजभानसलगा

    गण – तीन मात्राओं के समूह को गण कहा जाता है। गण आठ प्रकार के होते हैं –
    गण का नाम लक्षण चिह्न उदाहरण
    यगण प्रथम वर्ण लघु, शेष गुरु ।ऽऽ दिखावा
    मगण तीनों वर्ण गरु ऽऽऽ पाषाणी
    तगण प्रथम दो गुरु अंतिम लघु ऽऽ। तालाब
    रगण प्रथम और अन्तिम गुरु बीच का लघु ऽ।ऽ साधना
    जगण

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  4. -----------
    प्रमुख छंदों का परिचय:
    1 . चौपाई – यह मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं . प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं . पहले चरण की तुक दुसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है . प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए। जैसे :
    I I I I S I S I I I S I I I I I S I I I S I I S I I
    जय हनुमान ग्यान गुन सागर । जय कपीस तिहु लोक उजागर।।
    राम दूत अतुलित बलधामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।
    S I SI I I I I I I S S S I I SI I I I I I S S
    2. दोहा – यह मात्रिक अर्द्ध सम छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं . यति चरण में अंत में होती है . विषम चरणों के अंत में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए। सम चरणों में तुक भी होनी चाहिए। जैसे –
    S I I I I I I S I I I I I I I I I I I S I
    श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
    बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
    I I I I I I I I I I I I I S S I I I I S I
    3. सोरठा – यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है !इसके विषम चरणों में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं ! तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है ! इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है !
    जैसे –
    SI SI I I SI I S I I I I I S I I I
    कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।
    जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥
    S I S I I I S I I I I I S S I I I I I
    4. कवित्त – वार्णिक समवृत्त छंद जिसमें 31 वर्ण होते हैं ! 16 – 15 पर यति तथा अंतिम वर्ण गुरु होता है ! जैसे –
    सहज विलास हास पियकी हुलास तजि , = 16 मात्राएँ
    दुख के निवास प्रेम पास पारियत है ! = 15 मात्राएँ
    कवित्त को घनाक्षरी भी कहा जाता है ! कुछ लोग इसे मनहरण भी कहते हैं !
    5 . गीतिका – मात्रिक सम छंद है जिसमें 26 मात्राएँ होती हैं ! 14 और 12 पर यति होती है तथा अंत में लघु -गुरु का प्रयोग है ! जैसे –
    मातृ भू सी मातृ भू है , अन्य से तुलना नहीं ।


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  5. AABHAR ! Dil se dhero badhayi -guest of honor pritoshak ke liye.. Aap ko iss se bhi oonche samaan mile, meri hardik subhesha .. Sangeet ke mool tathyo ki vistrat paribhasha ke liye Dhanyewas ..Itni sunder abhivyakti --ek bahut mushkil vishaye , koi aap jaisi gyanwan hi likh sakti hai .Sangeet ke vidyarthio ko akarshik tohfa ..Ek dvd bna ke schools me smart A=V boards ke liye achhe price por uplabdh kerwa dijiye ..

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  6. आभार आदरणीय !

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  7. बहुत सुन्दर जानकारी...

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  8. अद्भुत जानकारी दी है है डॉ साहिबा
    जय हो

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