Saturday 29 April 2017

अकेला कोई नहीं ......

:)

     देखा    जाए तो बस दो ही अहसास  हैं ,..... मुख्य ! ख़ुशी और गम ! बाकी तो सब सेकेंड्री  हैं :) निर्भर  हैं ... प्रतिक्रिया  हैं .... अस्थाई  हैं .... :)
आप सहमत न भी हों ....... तब भी बात के साथ आपकी असहमति होगी ..... कुल मिलाकर साथ बना रहेगा :)
                    "साथ " _______ ये साथ निहायत ज़ुरूरी  है ! अकेला कुछ नहीं  होता ! एक प्रतीति .... एक भ्रम .... एक भुलावा ... एक दम्भ .... एक  पीड़ा ... जो हमे उकसाती है ये कहने को की हम अकेले हैं ! हम अकेले हो ही  नही सकते ! इन्सान यदि  इन्सान के साथ न हो ... ना दिखे तो क्या अकेले  हो गए ?
                         हम अपनेआप में किसी भीड़ से कम नही :) ख़ाली  दीखते  हैं ...पर होते नही खाली ! अकेले दीखते हैं बस ....होते नहीं ! कोई  भाव ..... कोई संकल्प ....कोई  ख़्वाब .... कोई याद ....कोई गम .... कोई  ख़ुशी .... एक सैलाब .... एक  बवंडर ..... एक प्रवाह ..... निरंतर चलता है , हमारे   साथ .....  हमारें  भीतर .... हमारे आसपास ! सच मानें ..... आप अकेले नही  हैं ..... चाहकर भी अकेले  नहीं हो सकते !
                 जो अकेला दीखता है ..... वो शरीर है बंधू ! और शरीर  नश्वर है .... माटी  हैं :) दिल और दिमाग काबिज़  हैं ... इस माटी के खिलौने पर :)
                               हम तो परमात्मा का अंश हैं ! परमात्मा सागर है .... तब बूंद अकेली हो सकती है ? ईश्वर वो वृहद वृक्ष है ..... जहाँ हमारी औकात पात समान है ! हम कण मात्र हैं ! अणु ? नहीं .... परमाणु :) नहीं .... हम उस परमाणु के प्रोटान - न्यूट्रान - इलेक्ट्रान हैं :) हम अकेले नही हो सकते ! हमारी  सामर्थ्य  ही नहीं ! 
___________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति



Sunday 23 April 2017

आईना ....

  आख़िर  ऐसी  भी क्या  बात  है आईने  में , कि   गौरैया  तक ..... वाह बात कैसे  नहीं ,यही  वो  चीज़  है जो जाने क्या -क्या गुमाँ  पैदा  करती है :) और  मुहावरों  के लच्छे  भी ख़ूब  चले इसे  लेकर ........ जब  नहीं था तब ? पानी में प्रतिबिम्ब  या फिर प्रियतमा  की आँखों में  देखे  जाने  का  चलन  था .... ऐसा  पढ़ा -सुना  है ! लेकिन  उससे  भी  पहले ....बहुत  पहले ... आदि मानव ,इस  झमेले  से  परे था ! ख़ुश  था ! सेहतमंद और बेफ़िक्र  भी ! उसके  पास  अपनी  भाषा थी .... इशारे  थे ! शिक्षा  नही थी ...न तकनीक  थी .... ये  सब धीरे - धीरे विकसित  हुआ ...... हम अब भी  विकासशील  ही  हैं .... तरक्की  हमें  कौनसा  दिन  दिखाकर  ,कहाँ  पहुचाएगी .ये  भी  नही  मालूम ! एक  जादुई  आईने  का  ज़िक्र  कथाओ  में  बड़ा सुना  .... यदि  उसकी इजाद  हो  जाए तो ..... आसानी  होगी ? ना जी हम  अब उस मुहाने पर हैं जहाँ ........... आसानी के आसार दूर तक नहीं :)

Saturday 1 April 2017

और मैं ख़ामोश हूँ ......


    सौ रंग, सब....
 बिखरे  पड़े हैं ...
और मै  ख़ामोश हूँ !
 रूठी -रूठी ....
दरिया अभी है ...
देखो सफ़ीने 
चुप से खड़े हैं !
और मैं ........
ख़ामोश हूँ !!
_______________ डॉ . प्रतिभा  स्वाति










  तन -निरोगी 
और मन में 
देखिये पीड़ा बड़ी है !
चाहती सुख की 
समाधी .. !
यम- नियम में 
गुज़री उम्र आधी !
इक  मुसाफ़िर 
सफ़र में  खड़ी है !
आई हूँ जहाँ से 
जाने की वहीं पर 
ज़िद है , हडबडी है !
बात छोटी सी 
आज लगती बड़ी है !
काज सब हुए पूरे 
विदाई की घड़ी है !
मत मुझे आवाज़ देना 
अब जल्दी बड़ी है ..
विदाई की घड़ी है !!
_________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति