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देखा जाए तो बस दो ही अहसास हैं ,..... मुख्य ! ख़ुशी और गम ! बाकी तो सब सेकेंड्री हैं :) निर्भर हैं ... प्रतिक्रिया हैं .... अस्थाई हैं .... :)
आप सहमत न भी हों ....... तब भी बात के साथ आपकी असहमति होगी ..... कुल मिलाकर साथ बना रहेगा :)
"साथ " _______ ये साथ निहायत ज़ुरूरी है ! अकेला कुछ नहीं होता ! एक प्रतीति .... एक भ्रम .... एक भुलावा ... एक दम्भ .... एक पीड़ा ... जो हमे उकसाती है ये कहने को की हम अकेले हैं ! हम अकेले हो ही नही सकते ! इन्सान यदि इन्सान के साथ न हो ... ना दिखे तो क्या अकेले हो गए ?
हम अपनेआप में किसी भीड़ से कम नही :) ख़ाली दीखते हैं ...पर होते नही खाली ! अकेले दीखते हैं बस ....होते नहीं ! कोई भाव ..... कोई संकल्प ....कोई ख़्वाब .... कोई याद ....कोई गम .... कोई ख़ुशी .... एक सैलाब .... एक बवंडर ..... एक प्रवाह ..... निरंतर चलता है , हमारे साथ ..... हमारें भीतर .... हमारे आसपास ! सच मानें ..... आप अकेले नही हैं ..... चाहकर भी अकेले नहीं हो सकते !
जो अकेला दीखता है ..... वो शरीर है बंधू ! और शरीर नश्वर है .... माटी हैं :) दिल और दिमाग काबिज़ हैं ... इस माटी के खिलौने पर :)
हम तो परमात्मा का अंश हैं ! परमात्मा सागर है .... तब बूंद अकेली हो सकती है ? ईश्वर वो वृहद वृक्ष है ..... जहाँ हमारी औकात पात समान है ! हम कण मात्र हैं ! अणु ? नहीं .... परमाणु :) नहीं .... हम उस परमाणु के प्रोटान - न्यूट्रान - इलेक्ट्रान हैं :) हम अकेले नही हो सकते ! हमारी सामर्थ्य ही नहीं !
___________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
देखा जाए तो बस दो ही अहसास हैं ,..... मुख्य ! ख़ुशी और गम ! बाकी तो सब सेकेंड्री हैं :) निर्भर हैं ... प्रतिक्रिया हैं .... अस्थाई हैं .... :)
आप सहमत न भी हों ....... तब भी बात के साथ आपकी असहमति होगी ..... कुल मिलाकर साथ बना रहेगा :)
"साथ " _______ ये साथ निहायत ज़ुरूरी है ! अकेला कुछ नहीं होता ! एक प्रतीति .... एक भ्रम .... एक भुलावा ... एक दम्भ .... एक पीड़ा ... जो हमे उकसाती है ये कहने को की हम अकेले हैं ! हम अकेले हो ही नही सकते ! इन्सान यदि इन्सान के साथ न हो ... ना दिखे तो क्या अकेले हो गए ?
हम अपनेआप में किसी भीड़ से कम नही :) ख़ाली दीखते हैं ...पर होते नही खाली ! अकेले दीखते हैं बस ....होते नहीं ! कोई भाव ..... कोई संकल्प ....कोई ख़्वाब .... कोई याद ....कोई गम .... कोई ख़ुशी .... एक सैलाब .... एक बवंडर ..... एक प्रवाह ..... निरंतर चलता है , हमारे साथ ..... हमारें भीतर .... हमारे आसपास ! सच मानें ..... आप अकेले नही हैं ..... चाहकर भी अकेले नहीं हो सकते !
जो अकेला दीखता है ..... वो शरीर है बंधू ! और शरीर नश्वर है .... माटी हैं :) दिल और दिमाग काबिज़ हैं ... इस माटी के खिलौने पर :)
हम तो परमात्मा का अंश हैं ! परमात्मा सागर है .... तब बूंद अकेली हो सकती है ? ईश्वर वो वृहद वृक्ष है ..... जहाँ हमारी औकात पात समान है ! हम कण मात्र हैं ! अणु ? नहीं .... परमाणु :) नहीं .... हम उस परमाणु के प्रोटान - न्यूट्रान - इलेक्ट्रान हैं :) हम अकेले नही हो सकते ! हमारी सामर्थ्य ही नहीं !
___________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
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