आख़िर ऐसी भी क्या बात है आईने में , कि गौरैया तक ..... वाह बात कैसे नहीं ,यही वो चीज़ है जो जाने क्या -क्या गुमाँ पैदा करती है :) और मुहावरों के लच्छे भी ख़ूब चले इसे लेकर ........ जब नहीं था तब ? पानी में प्रतिबिम्ब या फिर प्रियतमा की आँखों में देखे जाने का चलन था .... ऐसा पढ़ा -सुना है ! लेकिन उससे भी पहले ....बहुत पहले ... आदि मानव ,इस झमेले से परे था ! ख़ुश था ! सेहतमंद और बेफ़िक्र भी ! उसके पास अपनी भाषा थी .... इशारे थे ! शिक्षा नही थी ...न तकनीक थी .... ये सब धीरे - धीरे विकसित हुआ ...... हम अब भी विकासशील ही हैं .... तरक्की हमें कौनसा दिन दिखाकर ,कहाँ पहुचाएगी .ये भी नही मालूम ! एक जादुई आईने का ज़िक्र कथाओ में बड़ा सुना .... यदि उसकी इजाद हो जाए तो ..... आसानी होगी ? ना जी हम अब उस मुहाने पर हैं जहाँ ........... आसानी के आसार दूर तक नहीं :)
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