Sunday, 15 February 2015

ख़ामियां ... होने दो ज़ाहिर

एक लम्बी -सी कविता .....जो हो रही पूरी / यूँ ही किश्तों में :)

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DR. PRATIBHA SOWATY: ख़ामियां ... होने दो ज़ाहिर:  ( link )
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 बुराई / नहीं है

  बुरी उतनी !

 उसे / होने दो

 ज़ाहिर !

 वो / ख़ुद

 तलाश लेगी

  रास्ते

 समायोजन के !

 सुखद ,...

आयोजन के :)

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मिली  बुराई !

भलमनसाहत !

हुई आहत !

____________________________ हाइकू : डॉ. प्रतिभा स्वाति




4 comments:

  1. Nek pramarsh. Dev aur Danav iss sansar me srishti ke shuru se.. Burayi ki ninda ya aatunsat ker ke khud ko hi kashut hota hai. Bure shaksh ko bhaav mut dene me hi apni bhalayi he .

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  2. Bhut sunder likhati hai ji.
    Very beautiful kavita hai ji.

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