Tuesday 31 May 2016

माँ / अस्वीकार क्या कहूँ ....





 करता है ज़ुर्म छुपकर ,
गुनहगार क्या  कहूँ !
सुबूत के अभाव में सच
जाता है हार क्या कहूँ !

मोल नहीं ममता का ,
दिल के उद्गार क्या कहूँ !
पालन-पोषण-परवरिश,
 है सब बेकार क्या कहूँ !

न गिले न रखीं शिकायतें ,
बातें दो -चार क्या  कहूँ !
नफ़रत मैं लाऊं कहाँ से ,
दामन् में प्यार क्या कहूँ !

करती हूँ रोज़ ही ख़ुदा से ,
अर्ज़/मनुहार क्या  कहूँ !
कानोकान खबर नहीं है ,
न जाने संसार क्या कहूँ !

मैं मुआफ़ किये जाती हूँ ,
बहुत  बेज़ार क्या  कहूँ !
जीती हुई बाज़ी ख़ुद ही ,
जाती हूँ हार क्या कहूँ !

क्यूँ दोष है बेटों के सर ,
मढ़ते हरबार  क्या  कहूँ !
बेटी मिले बाप से  कहे ,
माँ अस्वीकार क्या कहूँ!
___________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति




(सन्दर्भ)


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Monday 30 May 2016

सूर्यनमस्कार/ 12 मन्त्र



:)

online yoga

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आप बन सकते हैं सदस्य , "ऑनलाइन  योगा" क्लब के :)
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DR. PRATIBHA SOWATY: online yoga by Dr. pratibha sowaty:



खिलता है यूँ नागफनी...


वो मौसम है ....

मेरे  दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है !
जैसे कोई  मौसम है , जो रोज़  बदलता है !

इक  गुनाह  माफ़ करती हूँ , आह भरके !
 और इक  को भूल जाती हूँ , चाह  करके !

पर वो  बदगुमान  इस कदर हो गया  है !
जिसे दिया था  जनम ,  वो  खो गया है !

__________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति





DR. PRATIBHA SOWATY: वो मौसम है ...





Thursday 26 May 2016

ज़िंदगी यूँ

DR. PRATIBHA SOWATY: बोती हूँ शब्द ....:








  गुज़रे  यूँ  ज़िन्दगी के

   बरस ,माह और पल  !

   सौ  बार गिरे गर तो ,

 सौ बार गए सम्हल !







Saturday 21 May 2016

5 वर्ण पिरामिड

           वर्ण   पिरामिड  को हाइकू जैसा कहा जाए तो हाइकू के साथ  बड़ा अन्याय होगा . इसकी तमाम  वजहें हैं जिनपर  विचार  किया जाना ज़ुरूरी है . जैसे सित्तौलिया में बच्चे  सात पत्थर जमाते हैं ,लगभग कुछ उसी तरह ...... यहाँ वर्ण की जमावट 7 लाइन में होती है .खेल के लिहाज़ से ये अच्छा है :)
__________________________ 1
 न 
देखे 
कहीं भी 
दिशाहीन 
यश का लोभ
भ्रम में पड़ा है !
अधर में खड़ा है !
_______________________2
हाँ 
दवा 
कड़वी 
सच जैसी 
पर जरूरी 
व्याधि से न डर
करे दवा असर 
____________________ 3

 क्यूँ  
वक्त 
करता 
नष्ट यूँ ही 
लेकर तुला 
तौलकर  कह !
न आवेश में बह !
_____________________ 4
है 
यश 
पिपासा
मिले थोड़ा 
भरे कटोरा
निरा अभिमानी !
इनसान अज्ञानी !
____________________

__________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
_____________________________5.


वर्ण पिरामिड : स्त्री

स्त्री
भेड़
नहीं है
मानव है.......


जानकारी google से साभार
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मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फैरो (सम्राट) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ खाद्यान, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था।
भारत की तरह ही मिस्र की सभ्यता भी बहुत पुरानी है और प्राचीन सभ्यता के अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। यों तो मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीज़ामें तीन लेकिन सामान्य विश्वास के विपरीत सिर्फ गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका।


यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी परिशुद्धता से बनाया गया है कि वर्तमान तकनीक ऐसी कृति को दोहरा नहीं सकती। कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर! प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे।
म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४५० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २३ वर्षों मे पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा। क्या ऐसा संभव था? विशाल श्रमशक्ति के अलावा क्या प्राचीन मिस्रवासियों को सूक्ष्म गणितीय और खगोलीय ज्ञान रहा होगा? विशेषज्ञों के मुताबिक पिरामिड के बाहर पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती। मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।


Tuesday 17 May 2016

चाँद अकेला





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चाँद अकेला 
चांदनी भी अकेली 
 बूझूं  कैसे पहेली 

मैं अनजानी 
मेघ हो या सागर 
कैसे दोनों में पानी 

___________ सेदोका : डॉ . प्रतिभा स्वाति



Saturday 14 May 2016

ऐब ....तुझमें नज़र आते हैं

          गलती ,भूल , गुनाह ,पाप, अपराध,ऐब ,नकार , बुराई, कमी या खामी _______ ! कुल मिलाकर कितने भी पर्याय ले  आऊँ , प्रत्यक्ष  या परोक्ष इशारा ' दुर्गुण ' की तरफ़ ही है ! ये  कहाँ से आते हैं ? कितनी प्रकार के होते हैं ? इन्हें कैसे दूर किया जा सकता  है ? यदि इन्हें दूर ना किया जाए तो क्या दुष्परिणाम  होंगे ?
___________________ इसी खयाल से fb पर ये दो लाइन डाल दीं , देखिये कितनी छिछालेदर होगी ! जितने मुंह उतनी बातें !  मामला उलझ सकता है ! हल - समाधान - निराकरण की उम्मीद जरा कम ही है !


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" ऐब "............ जो मुझमें हैं !

ज़ाहिर करूँ ...........किसपर ?


___________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति

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 ____________ मानव  गलतियों  का पुतला है " इस" सन्दर्भ में इस बात को शामिल कर सकते  हैं पर पूर्ण सहमति देना  मानवता  नहीं होगी !

______________ गलती हर इनसान से होती है जाने या अनजाने में .अनजाने में हुई गलती का कारण  कोई भी  हो ,वो  क्षम्य  हो सकती है . उसे सुधारा  जा सकता है . लेकिन जो जानबूझकर  की जाती है  उसके कारण तमाम  हो सकते हैं और परिणाम  घातक हो सकते हैं !वो अपराध  की श्रेणी में आ सकते  हैं जहाँ  सज़ा का  प्रावधान है .
________इसीलिए  माँ को पहला गुरु कहा गया है .वह देती  है संस्कार . जो  अच्छे चरित्र के लिए अनिवार्य होते हैं . खराब से खराब माँ भी अपने बच्चों की ख़ुशहाली के लिए उन्हें अच्छी  बातें सिखाती  है . बुरे  काम से रोकती  है .तब जाकर  समाज को एक अच्छे  नागरिक को पाने  की उम्मीद  बंधती है !
___________ फ़िर कहाँ  बनते हैं ज़ुर्म और कहाँ से आते हैं गुनहगार ? यदि गुनहगार  कोई है ही तब उसे ज़ुर्म का अवसर क्यूँ दिया जाए ? ज़ुर्म होने पर असर औरों पर  भी  होगा ! लेकिन ज़ुर्म करने पर जहाँ साबित करने  का प्रावधान  है वहां ज़ुर्म  किये बिना अपराधी सोच और चरित्र की  धरपकड़  हास्यास्पद और हवाई लगती है ! उसे  न्यायोचित  क़रार  नहीं दिया  जा  सकता ! लेकिन  समस्या  की तह  तक  जाने के लिए उसकी  जड़ को  मिटाने  के लिए ये  कदम ज़ुरूरी  है !
____________ यदि कुछ  विशेष की प्राप्ति  की अभिलाशा  हो तब रिस्क  तो  लेना पड़ेगा , कोशिश  तो  करनी  पड़ेगी .लेकिन  यदि  प्रयत्न 100 %  ईमानदारी  से  हो  तब भले अर्जुन  को पूरी  चिड़िया  दिखे ,निशाना  आँख  पर  ही  लगेगा . अब  न इतनी  ईमानदार  कोशिश  होगी ना  लक्ष्य  की प्राप्ति ! तब सब  यूँ  ही चलेगा , चलता रहेगा . फ़िर  क्यूँ  नहीं  इस विषय  ही  को दरकिनार  कर  हम ख़ुशी  के  रास्ते  ख़ोज  लें ! खुशबू  के  सवेरे  को  दोपहर तक रोकने  का  यत्न  करें ! तब  शायद अप्राप्य  की  जलन पर   कोई  शीतल  अहसास राहत दे . ये   हो सकता  है . यहाँ  ईमानदारी 100  प्रतिशत  ना भी  रही  तो  चलेगा बस  सोच सकारात्मक  हो . इसमें  कोई दिक्कत  नहीं . इसका  रोपण  बचपन  ही में होता  है ! माँ  का   दायित्व  बढ़ा  रहे  हैं  हम  इसी  बहाने  से , इसी  गरज़  से ! पर ...
__________________ क्या  हमें हक़ है ,माँ  के निर्बल  कांधों  पर और बोझ  डालने  का ? हम  जो  फर्ज़  से  नज़रें  चुराते  हैं . किस  मुंह  से गिले शिकवे और हक़ की बात करते  हैं ? हमें आदत  हो  गई है अपेक्षा  का  कटोरा  लेकर  भीख  मांगने  की ! दूसरों  में कमी देखने  की ! हमें  ख़ुद  को  सुधारने  की ज़ुरूरत  है ,अनिवार्यता  है ! इस शुरुआत  का  कोई  महूरत  नहीं , आज  से .....अभी से ...
___________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति




Wednesday 4 May 2016

हाइकू :बच्चे - बुज़ुर्ग

*
 बच्चे - बुज़ुर्ग 
बढ़ गई दूरियां
मजबूरियां
*
पेड़ खजूर 
धरा और आकाश 
क्यूँ हुए दूर 
*
दिले नाशाद
अब रोता अकेला
है अलबेला 
*
सब  गंवाई 
जोड़कर पाई -पाई 
व्यथा - रुलाई 
*
बदलती हैं 
रोज़ ही परिभाषा 
आशा निराशा 
*
रिश्तों की लाश 
हरकोई ढो रहा 
सब खो रहा 
*
पुण्य  या पाप 
मन ही का संताप 
अपनेआप
*

धन का लोभ 
दिल में पलता है 
क्यूँ खलता है
*
न कर चाह 
पूनम का ग्रहण 
चंद्र की आह 
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__________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति



Monday 2 May 2016

ख़्वाब मेरे लिए जुरुरी हैं ...

आईने को शिक़ायत है -
आजकल दिखती नहीं !
कलम गिला लेके बैठी-
आजकल लिखती नहीं !

पूछें हैं पडोसी सब ही -
कहाँ घूम आई हो ?
मुहल्ले के बच्चे मांगें-
बोलो क्या-क्या लाई हो ?

सवालों के निशाने पर हूँ !
ज़वाब मेरे लिए जुरुरी हैं !
ताबीर देनी है जिनको वो,
ख़्वाब मेरे लिए जुरुरी हैं !
__________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति