Monday, 2 May 2016

ख़्वाब मेरे लिए जुरुरी हैं ...

आईने को शिक़ायत है -
आजकल दिखती नहीं !
कलम गिला लेके बैठी-
आजकल लिखती नहीं !

पूछें हैं पडोसी सब ही -
कहाँ घूम आई हो ?
मुहल्ले के बच्चे मांगें-
बोलो क्या-क्या लाई हो ?

सवालों के निशाने पर हूँ !
ज़वाब मेरे लिए जुरुरी हैं !
ताबीर देनी है जिनको वो,
ख़्वाब मेरे लिए जुरुरी हैं !
__________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति


No comments:

Post a Comment