आईने को शिक़ायत है -
आजकल दिखती नहीं !
कलम गिला लेके बैठी-
आजकल लिखती नहीं !
पूछें हैं पडोसी सब ही -
कहाँ घूम आई हो ?
मुहल्ले के बच्चे मांगें-
बोलो क्या-क्या लाई हो ?
सवालों के निशाने पर हूँ !
ज़वाब मेरे लिए जुरुरी हैं !
ताबीर देनी है जिनको वो,
ख़्वाब मेरे लिए जुरुरी हैं !
__________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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