*
बच्चे - बुज़ुर्ग
बढ़ गई दूरियां
मजबूरियां
*
पेड़ खजूर
धरा और आकाश
क्यूँ हुए दूर
*
दिले नाशाद
अब रोता अकेला
है अलबेला
*
सब गंवाई
जोड़कर पाई -पाई
व्यथा - रुलाई
*
बदलती हैं
रोज़ ही परिभाषा
आशा निराशा
*
रिश्तों की लाश
हरकोई ढो रहा
सब खो रहा
*
पुण्य या पाप
मन ही का संताप
अपनेआप
*
धन का लोभ
दिल में पलता है
क्यूँ खलता है
*
न कर चाह
पूनम का ग्रहण
चंद्र की आह
*
__________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
बच्चे - बुज़ुर्ग
बढ़ गई दूरियां
मजबूरियां
*
पेड़ खजूर
धरा और आकाश
क्यूँ हुए दूर
*
दिले नाशाद
अब रोता अकेला
है अलबेला
*
सब गंवाई
जोड़कर पाई -पाई
व्यथा - रुलाई
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बदलती हैं
रोज़ ही परिभाषा
आशा निराशा
*
रिश्तों की लाश
हरकोई ढो रहा
सब खो रहा
*
पुण्य या पाप
मन ही का संताप
अपनेआप
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धन का लोभ
दिल में पलता है
क्यूँ खलता है
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न कर चाह
पूनम का ग्रहण
चंद्र की आह
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__________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
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