सौ रंग, सब....
बिखरे पड़े हैं ...
और मै ख़ामोश हूँ !
रूठी -रूठी ....
दरिया अभी है ...
देखो सफ़ीने
चुप से खड़े हैं !
और मैं ........
ख़ामोश हूँ !!
_______________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
तन -निरोगी
और मन में
देखिये पीड़ा बड़ी है !
चाहती सुख की
समाधी .. !
यम- नियम में
गुज़री उम्र आधी !
इक मुसाफ़िर
सफ़र में खड़ी है !
आई हूँ जहाँ से
जाने की वहीं पर
ज़िद है , हडबडी है !
बात छोटी सी
आज लगती बड़ी है !
काज सब हुए पूरे
विदाई की घड़ी है !
मत मुझे आवाज़ देना
अब जल्दी बड़ी है ..
विदाई की घड़ी है !!
_________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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