Sunday 1 September 2013

आधुनिक हाईगा







           जब  भी कोई नया प्रयोग होता है , उसकीआलोचना  के रास्ते खुल जाते हैं .तब उसे सोने को खरा करने  की प्रक्रिया में शामिल कर लेती हूँ !
       और फिर जब स्वीकार की जड़ें गहरी  हों , तब अस्वीकार की बयार भी मन को गुदगुदाती है .
आख़िर  क्यूँ नही चढ़  पाया ' हाइकू'  जन -मानस  की 
जुबान  पर ? क्यूँ   हाइकू  दूसरे देश से आकर यहाँ अज़नबी  है ? ये  मेरे  मन में मुस्कुराते  जवाबों  के  सवाल हैं ! जो  आपके  सामने तनकर  खड़े  हैं !
            haiga  को  नए  कलेवर  में  लेकर ! thnx !
------------------------ डॉ . प्रतिभा  स्वाति


14 comments:

  1. v. nice.....fantastic...mam

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  2. बहुत हो रही है
    इस ब्लाग पर
    हल चल
    कैसे ध्यान
    करें लिखा
    हुआ जब
    नहीं रहा
    है चल ! :)

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    1. ji likha hua bhi chal padega sr / koshish karungi

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  3. thnx / vibha ji ------------- mae zurur dekhungi

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  4. ☆★☆★☆


    वाऽहऽऽ… डॉ. प्रतिभा स्वाति जी !
    वाह वाऽह…!
    बहुत ख़ूबसूरत !
    सभी हाइगा मन लुभा रहे हैं ...
    :)

    सब कुछ प्रशंसा योग्य ही है ...
    आलोचना को जगह ही नहीं ...
    असावधानी अवश्य हो गई है आपसे
    :)

    # गिफ़ चित्र पर शब्द-सुधार कठिन न हो तो , परछाइयां / गहराइयां कर लीजिएगा ,
    'ई' बहुवचन होने पर 'इ' में परिवर्तित हो जाता है

    मेडिकल स्टोर वालों को अक्सर उनके बोर्ड पर दवाईयां लिखने पर मेरी बिन मांगी सलाह मिल जाती है...
    "भाई सा'ब, बड़ी मेहरबानी ! दवाइयां लिखवा लें "
    :))

    पुनः सुंदर सृजन के लिए साधुवाद !

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार



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  5. thnx rajendr sr -------------- mae is bat ko hamesha dhyan rkhungi

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  6. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=317971358344075&set=a.166396676834878.40125.166364600171419&type=1&theater

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  7. सचमुच / ये ,
    तय कर लिया ,
    है / मैंने !
    पूछूंगी / ज़ुरुर ,
    मिलने आएगा ,
    जब वो आज !!
    कहाँ जाता है वो ?
    आख़िर क्या है ,
    हर अमावस ,
    उसके / यूँ
    *
    *
    गायब होने का राज़ !!!
    ----------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति

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  8. सचमुच / अब ,

    वो नहीं दिखती !

    अब कहाँ रहे ,

    वो आंगन / चौपाल ?

    गोधूली बेला में ,

    रंभाते हुए बछड़े !

    धूल उड़ाती गैय्या ,

    शोर मचाते ग्वाल !

    अरे !

    मेरे पास / तो बस ,

    कुछ यादें हैं !

    बचपन की !

    भुला दूँ / तो क्यूँ आख़िर ?

    और याद रखूं / तो

    इनका क्या करूं फिर ?

    खोजती हूँ / रोज़

    और / सहेजती हूँ चित्र !

    और बुन देती हूँ !

    कोई गीत / कहानी !

    नई नस्ल के लिये !

    जैसे संजोता है किसान ,

    अच्छे बीज !

    उम्दा फस्ल के लिये !

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