Friday, 21 February 2014

प्रभु


 प्रभु  का नाम !
श्याम / घनश्याम !
मुरली - मनोहर !
या सियाराम !
नारायण / या फिर 
शिव - शंकर !

जितने रूप ,
उतने नाम !
हम सब ने ही ,
रचा विधान !

फिर / असमंजस क्यूँ ?
 ये समाज  बेबस क्यूँ ?

ये / माया प्रभु  की है !
जाल  हमने  रचा  है !
हम नही होते मौन ,
जबकि, कहने - सुनने को
अब   कुछ नही बचा  है !

वेद / उपनिषद / पुराण 
पन्नो में / फड़फड़ाते  हैं !
रे मन / ध्यान से देख ,
लाख / रखे नाम तूने ,
वो एक से मुस्कुराते है !
प्रभु / प्रभु ही कहाते हैं !
----------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति

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