Wednesday, 26 March 2014

पंछी


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पंछी  /  उड़ना  जानता  है :)
रोज़ नापता / छूता फ़लक है !
नीड़ / अम्बर में नहीं बनाता ,
ये ज़मी से जुड़ने की ललक है :)
--------------------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

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7 comments:

  1. वाह...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  2. वाह बहुत सुंदर

    पर कभी कभी
    छोड़ कर भी
    जाना पड़ता है
    नीड़ को भी
    अम्बर को नहीं
    उससे भी और
    ऊपर कहीं
    नीड़ की तलाश में :)

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  3. आदरणीय , बहुत बढ़िया कृति , पंछी छोड़ के जाये हि क्यों , नमक जो ज़मी का खाया है , मेरा मतलब जो इतना प्रेम मिला , तो वो आसमान क्या देगा , जिसे देखने के लिये , हमें ऊपर की ओर देखना पड़ता है | धन्यवाद !
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