DR. PRATIBHA SOWATY: सेदोका : बचपन:
गुड्डे - गुड़िया !
खेले थे घर - घर !
अब गया बिसर !
यादों के पर !
ये उड़- उड़ कर !
आएं अक्सर !
----------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
वो मौसम है .... मेरे दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है ! जैसे कोई मौसम है , जो रोज़ बदलता है ! इक गुनाह माफ़ करती हूँ , आ...
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