Friday 16 January 2015

महत्वाकांक्षा

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 महत्वकांक्षा !
हो गई है ज़ुरूरी !
क्या मज़बूरी ?
________ हाइकू : डॉ.प्रतिभा स्वाति


 


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ये जो ताज है , 
खूबसूरत !
 आम ... के लिए, 
अप्राप्य -सा !
या विशेष... के लिए ,
बेहद ज़ुरुरी ,
 अनिवार्य - सा !

क्या देता है, पहचान ?
या फ़िर सुकून ?
या आत्मविश्वास ?
या कुछ और ....

.......इसे पहनकर 
इनसान ,
सो नहीं सकता !
खुलकर, 
रो नहीं सकता !

फ़िर भी / इसके लिए 
लड़ता  है जंग .
पलता है दिल में,
परास्त  होने का भय !
अपनों के लिए ,
बेवजह संशय !

 महत्वकांक्षा ,
के इस ताज के लिए ,
क़ुरबानी ज़ुरूरी है !
बतौर / क़ीमत !

ये क़ीमत 
हो सकते हैं / रिश्ते !
वो अनमोल  रिश्ते ,
जो मिलते हैं ,
....... मुफ़्त में !

बेदाग़ / ममता 
हो जाती है आहत ,
कई बार / बार -बार,
इसके तहत  !

इस ताज की ,
जगमग में 
नहीं दीखता / वो लहू 
जो नर्म भाल को
खरोंचकर / रिसता है !

मरते हैं अहसास ,
सम्वेदना / भाव !
और / फ़िर / एकदिन 
रह जाता है / अभाव !

 चाहें  तब ,उतारना
 यदि ,तब 
 इस ताज को  !
नहीं होती हिम्मत !
 क्यूंकि /वह,
 बन चुका होता है ,
शरीर का अंग  !

जीवन - मरण 
दोनों मुश्किल !
बहुत महंगी है ,
 समझदारी !

  तो क्या ताज,
जकड़ लेता है ,
सोच को ?........
मेरे एक हाथ में,
 कलम ...और
 दूसरा / पीठ तक
नहीं   पहुँचता ,
की .... शाबाश .. मैंने ..उस ताज को , देखा - छुआ , पहनकर / आइना देखा ..........और / उतारकर रख दिया ..हमेशा के लिए :)
___________ डॉ . प्रतिभा स्वाति

9 comments:

  1. आदरणीया प्रतिभा जी, सादर नमन! सुन्दर हाइकू मन प्रसन्न हो गया! साभार!
    धरती की गोद

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  2. Vastivkta ki khusboo, maine mahatuvkansha ke taaj ko anubhav ker ke utar ker rakh diya .. kiu ki iske nuksaan mun me hone wale ghamund se adhik the mere liye..Kamaal ki anubhooti Sowaty ji ..Dono labh aur haani sarike se ginwa di aap ne . Kya poora sach --jeevan \ maran --dono mushkil ..Mahan margdarshan un abhimani logo ke liye, jo mahatuvkansha ke taz ko apni pehchan samajh baithe hain... Bahut Dhanyewad

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  3. nive v nice

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