Sunday, 24 April 2016

बेहतर है ...कवि ख़ुद व्याख्या करे


________________________________________________________
      स्कूल के दिन , हिंदी की क्लास और किताब की कोई भी कविता , याद कीजिये ! कविता का अपना मनोविज्ञान है ,सबको अच्छी लगती है . जल्दी याद हो जाती है . कोई मधुर स्वर में गा दे गुनगुना दे , तो बरसों मन में बसी रहती है ! लेकिन कविता के मनोविज्ञान और परीक्षा के मनोविज्ञान में इतना फर्क क्यूँ है :)
_____________ परीक्षा में कवि दुश्मन और कविता ज़हर क्यूँ लगती है :)
____________ तब व्याख्या करते दम निकलता था और अब fb पर एक लाइन लिखके देखिये बिना कहे कितने लोग व्याख्या को आतुर नहीं अमादा हैं :) तो क्या अब ,इसका असर परीक्षा के मनोविज्ञान पर सकारात्मक पड़ने वाला है ? शायद हाँ ( सकारात्मक सोच के तहत :) ) शायद ना ,क्यूंकि हम उर्जा और समय को सही दिशा नहीं दे रहे !
______________ पर सीधी -सी बात है हम शुरुआत ख़ुद ही से करें , कम से कम हमें ख़ुदको ये मालूम हो की हम चाहते क्या हैं ? और कर क्या रहे हैं ?  यदि हम सही दिशा में हैं तो  हमे सफ़लता 100 प्रतिशत प्राप्त होगी ही . ये नियम  अंक-गणित में चलता है - 1 और 1 , 2 वाला और रेखागणित में भी . यदि 90 अंश पर दो रेखाएं हैं , तब समकोण  त्रिभुज ही बनेगा ! 
_________ हिंदी की अधिकांश समस्याएँ गणित से इसी तरह सुलझती हैं - ये कहता है मनोविज्ञान ! लो मैंने कितने सारे मोती बिखरा दिए - सार्थक या निरर्थक ? ये कौन तय करेगा ? फ़ैसले की घड़ी - घुटना पेट को झुकेगा :) सही आप हैं सही मैं भी ! बस यूँ ही एक दूसरे को गलत कहके  वक्त ज़ाया कर रहे हैं ! हम दोनों अलग हैं !हमारी अपनी मंज़िल है अपने रास्ते हैं . 
____________ कुल मिलाकर आदर्श स्थिति वो है जब माला बनी रहे ! और अगर समय - स्थिति - मजबूरी या ज़ुरूरत के आघात से टूट गई तो भी हर मोती को मुस्कुराने का हक़ है !
______________मोह -प्यार-फ़र्ज़ -विवशता के मोती कानून -धर्म-समाज के जिस धागे से बंधे थे . 30 साल तक गले में पड़ी उस माला के लिए ईश्वर का आभार करूं ? या टूट जाने के लिए भाग को कोसूं ? या फ़िर लोभ -लाभ - याचना के धागे लेकर फ़िर गूंथने की कोशिश ?  
_________________ मुझे लगता है हर मोती का अपना हक़ है :) माँ-बाप-भाई -बहन -बेटी सब अलग हैं , ख़ुश हैं .
मुझे भी कोई गम नहीं :) ______ तो ?

मैं जिस माला के टूटने से आहत हूँ ,
वो माला है ..............रिश्तों वाली !

_______________________________
एक रिश्ता बचा है अब भी , जो जन्म से म्रत्यु तक बना रहता है - आत्मा और  परमात्मा का ! उसके लिए 108 मनके यदि टूटे- बिखरें-गुमें , कोई फ़र्क नहीं पड़ता :) वैसे इस माला को जप करते वक्त जिस सुकून - भक्ति -समर्पण -आस्था और विश्वास के साथ थामा जाता है , कभी  टूटी नहीं , न टूट सकती है क्यूंकि इसका ताल्लुक तो श्वास के आरोह - अवरोह से है ! इन  मोह -माया के कच्चे धागों ने मुझे कितना कमज़ोर और कायर बना दिया था  !  एकदम असमर्थ ....अशक्त .....बेजान ....मृतप्राय ! 
____________________ समय घाव देता और भरता है !वक्त लगता है ....पर सोच और दिशा तय हो ये ज़ुरूरी है .
गलती मेरी थी , माला को टूटने से पहले मुझे उतार देना था.  

   
________________ एक ही लाइन जगजीत की आवाज़ में - ' मैं  तनहा था , मगर टूटा नहीं था "
अब  उस एक लाइन पर फ़िर वक्त  बर्बाद करने की बारी है , 4 minit पहले जिसका स्निप शॉट लेकर ये post लिखी ! ये मेरे लिए मेरी किताब का पन्ना है और वो जो वहां लिख आई थी - इस छोटी कहानी का बड़ा शीर्षक :)
___________________________________
टूटी जो माला ,
बिखर गए भरम मेरे !
_________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
____________________________



No comments:

Post a Comment