करता है ज़ुर्म छुपकर ,
गुनहगार क्या कहूँ !
सुबूत के अभाव में सच
जाता है हार क्या कहूँ !
मोल नहीं ममता का ,
दिल के उद्गार क्या कहूँ !
पालन-पोषण-परवरिश,
है सब बेकार क्या कहूँ !
न गिले न रखीं शिकायतें ,
बातें दो -चार क्या कहूँ !
नफ़रत मैं लाऊं कहाँ से ,
दामन् में प्यार क्या कहूँ !
करती हूँ रोज़ ही ख़ुदा से ,
अर्ज़/मनुहार क्या कहूँ !
कानोकान खबर नहीं है ,
न जाने संसार क्या कहूँ !
मैं मुआफ़ किये जाती हूँ ,
बहुत बेज़ार क्या कहूँ !
जीती हुई बाज़ी ख़ुद ही ,
जाती हूँ हार क्या कहूँ !
क्यूँ दोष है बेटों के सर ,
मढ़ते हरबार क्या कहूँ !
बेटी मिले बाप से कहे ,
माँ अस्वीकार क्या कहूँ!
___________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
(सन्दर्भ)
___________
No comments:
Post a Comment