Friday, 23 September 2016

सिन्धु -संधि क्या इस मुद्दे पर तोड़ने के लिए बनी थी ?


http://hindi.pradesh18.com/news/nation/story-of-1960-sindhu-jal-samjhota-1490074.html ---------------- से साभार


__________________________ एक कहावत हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओँ में बन चुकी है ---  "जैसे को तैसा , " टिट फ़ॉर ..... " फ़िर क्यूँ नहीं धोखे को धोखे ही से निपटाया जाए ? ढोल -मंजीरे से हर घोषणा ज़ुरूरी है ? हर बात मिडिया पर ? इस जाहिरे - मुज़ाहिरे से  शत्रु को और आस्तीन में  छुपे सफ़ेदपोश दोनों को हम सतर्क करके कौनसी बुद्धिमानी की मिसाल कायम करना चाहते हैं ? 

_____________ डॉ. प्रतिभा स्वाति


सिंधु बेसिन की सभी नदियों का स्रोत भारत में है
इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर किया गया क्योंकि सिंधु बेसिन की सभी नदियों के स्रोत भारत में हैं (सिंधु और सतलुज हालांकि चीन से निकलती हैं). समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्तें तय की गईं कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता 

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सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु जल संधि दो देशों के बीच पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे. इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं. इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी.



 क्या  ये संधि  इस दिन के लिए

 बनी थी ? कि मोदी राज में ....


सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग - धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय - गांडीव की टंकार हूँ मैं
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा की
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्भाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं
बंधा तूफ़ान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।
-रामधारी सिंह दिनक

   
____________ दिनकर  की ये 

आवाज़ .....काश ...



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