प्रभु का नाम !
श्याम / घनश्याम !
मुरली - मनोहर !
या सियाराम !
नारायण / या फिर
शिव - शंकर !
जितने रूप ,
उतने नाम !
हम सब ने ही ,
रचा विधान !
फिर / असमंजस क्यूँ ?
ये समाज बेबस क्यूँ ?
ये / माया प्रभु की है !
जाल हमने रचा है !
हम नही होते मौन ,
जबकि, कहने - सुनने को
अब कुछ नही बचा है !
वेद / उपनिषद / पुराण
पन्नो में / फड़फड़ाते हैं !
रे मन / ध्यान से देख ,
लाख / रखे नाम तूने ,
वो एक से मुस्कुराते है !
प्रभु / प्रभु ही कहाते हैं !
----------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति