गलती ,भूल , गुनाह ,पाप, अपराध,ऐब ,नकार , बुराई, कमी या खामी _______ ! कुल मिलाकर कितने भी पर्याय ले आऊँ , प्रत्यक्ष या परोक्ष इशारा ' दुर्गुण ' की तरफ़ ही है ! ये कहाँ से आते हैं ? कितनी प्रकार के होते हैं ? इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है ? यदि इन्हें दूर ना किया जाए तो क्या दुष्परिणाम होंगे ?
___________________ इसी खयाल से fb पर ये दो लाइन डाल दीं , देखिये कितनी छिछालेदर होगी ! जितने मुंह उतनी बातें ! मामला उलझ सकता है ! हल - समाधान - निराकरण की उम्मीद जरा कम ही है !
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" ऐब "............ जो मुझमें हैं !
ज़ाहिर करूँ ...........किसपर ?
___________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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____________ मानव गलतियों का पुतला है " इस" सन्दर्भ में इस बात को शामिल कर सकते हैं पर पूर्ण सहमति देना मानवता नहीं होगी !
______________ गलती हर इनसान से होती है जाने या अनजाने में .अनजाने में हुई गलती का कारण कोई भी हो ,वो क्षम्य हो सकती है . उसे सुधारा जा सकता है . लेकिन जो जानबूझकर की जाती है उसके कारण तमाम हो सकते हैं और परिणाम घातक हो सकते हैं !वो अपराध की श्रेणी में आ सकते हैं जहाँ सज़ा का प्रावधान है .
________इसीलिए माँ को पहला गुरु कहा गया है .वह देती है संस्कार . जो अच्छे चरित्र के लिए अनिवार्य होते हैं . खराब से खराब माँ भी अपने बच्चों की ख़ुशहाली के लिए उन्हें अच्छी बातें सिखाती है . बुरे काम से रोकती है .तब जाकर समाज को एक अच्छे नागरिक को पाने की उम्मीद बंधती है !
___________ फ़िर कहाँ बनते हैं ज़ुर्म और कहाँ से आते हैं गुनहगार ? यदि गुनहगार कोई है ही तब उसे ज़ुर्म का अवसर क्यूँ दिया जाए ? ज़ुर्म होने पर असर औरों पर भी होगा ! लेकिन ज़ुर्म करने पर जहाँ साबित करने का प्रावधान है वहां ज़ुर्म किये बिना अपराधी सोच और चरित्र की धरपकड़ हास्यास्पद और हवाई लगती है ! उसे न्यायोचित क़रार नहीं दिया जा सकता ! लेकिन समस्या की तह तक जाने के लिए उसकी जड़ को मिटाने के लिए ये कदम ज़ुरूरी है !
____________ यदि कुछ विशेष की प्राप्ति की अभिलाशा हो तब रिस्क तो लेना पड़ेगा , कोशिश तो करनी पड़ेगी .लेकिन यदि प्रयत्न 100 % ईमानदारी से हो तब भले अर्जुन को पूरी चिड़िया दिखे ,निशाना आँख पर ही लगेगा . अब न इतनी ईमानदार कोशिश होगी ना लक्ष्य की प्राप्ति ! तब सब यूँ ही चलेगा , चलता रहेगा . फ़िर क्यूँ नहीं इस विषय ही को दरकिनार कर हम ख़ुशी के रास्ते ख़ोज लें ! खुशबू के सवेरे को दोपहर तक रोकने का यत्न करें ! तब शायद अप्राप्य की जलन पर कोई शीतल अहसास राहत दे . ये हो सकता है . यहाँ ईमानदारी 100 प्रतिशत ना भी रही तो चलेगा बस सोच सकारात्मक हो . इसमें कोई दिक्कत नहीं . इसका रोपण बचपन ही में होता है ! माँ का दायित्व बढ़ा रहे हैं हम इसी बहाने से , इसी गरज़ से ! पर ...
__________________ क्या हमें हक़ है ,माँ के निर्बल कांधों पर और बोझ डालने का ? हम जो फर्ज़ से नज़रें चुराते हैं . किस मुंह से गिले शिकवे और हक़ की बात करते हैं ? हमें आदत हो गई है अपेक्षा का कटोरा लेकर भीख मांगने की ! दूसरों में कमी देखने की ! हमें ख़ुद को सुधारने की ज़ुरूरत है ,अनिवार्यता है ! इस शुरुआत का कोई महूरत नहीं , आज से .....अभी से ...
___________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति