ठठा पड़ता है भाई ....
भौजाई मुंह बनाती है !
मुस्कुराते हैं पिता भी ...
माँ वारी जाती है !
महकती है घर में ...
बिटिया बनके आती है !
होती है अपनी मगर ...
पराई हो जाती है !
कभी भेजती है राखी ...
कभी बुलाई जाती है !
दिल से दूर नही होती ...
न ही भुलाई जाती है !
दहल जाता है दिल ...
ससुराल में सताई जाती है ?
उछलता है मन बल्लियों.....
पलकों पे बिठाई जाती है !
रोकर दिल नहीं भरता ....
अतीत आगे आता है !
हर बात बचपन की ...
फिर दोहराई जाती है !
निकलते हैं गठरी से ....
पुराने वही गुड्डे - गुड़िया !
किस्से जी उठते हैं फिर ....
लोरियाँ सुनाई जाती हैं !
माँ बनाती गोल मगर ...
तिरछी उसे भाती है !
नाजुक हाथ से अपने ...
बेटी रोटी बनाती है !
कुछ यादें कुछ ख़्वाब ...
यूँ निकल गई सदियाँ !
न भूलती है बेटी और ...
न बेटी भुलाई जाती है !
बिदाई बस रस्म समझिये ...
रस्म तो निभाई जाती है !
कलेजा माँ का छलनी ...
बेटी ना भुलाई जाती है !
_____________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
भौजाई मुंह बनाती है !
मुस्कुराते हैं पिता भी ...
माँ वारी जाती है !
महकती है घर में ...
बिटिया बनके आती है !
होती है अपनी मगर ...
पराई हो जाती है !
कभी भेजती है राखी ...
कभी बुलाई जाती है !
दिल से दूर नही होती ...
न ही भुलाई जाती है !
दहल जाता है दिल ...
ससुराल में सताई जाती है ?
उछलता है मन बल्लियों.....
पलकों पे बिठाई जाती है !
रोकर दिल नहीं भरता ....
अतीत आगे आता है !
हर बात बचपन की ...
फिर दोहराई जाती है !
निकलते हैं गठरी से ....
पुराने वही गुड्डे - गुड़िया !
किस्से जी उठते हैं फिर ....
लोरियाँ सुनाई जाती हैं !
माँ बनाती गोल मगर ...
तिरछी उसे भाती है !
नाजुक हाथ से अपने ...
बेटी रोटी बनाती है !
कुछ यादें कुछ ख़्वाब ...
यूँ निकल गई सदियाँ !
न भूलती है बेटी और ...
न बेटी भुलाई जाती है !
बिदाई बस रस्म समझिये ...
रस्म तो निभाई जाती है !
कलेजा माँ का छलनी ...
बेटी ना भुलाई जाती है !
_____________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति