Tuesday, 10 July 2018

बेटी जब .....

 ठठा पड़ता  है भाई ....
भौजाई   मुंह  बनाती  है !
मुस्कुराते  हैं पिता भी ...
माँ  वारी   जाती  है  !

महकती  है  घर  में ...
बिटिया बनके  आती  है !
होती है अपनी मगर ...
पराई हो  जाती  है !

कभी  भेजती  है  राखी ...
कभी बुलाई  जाती  है !
दिल से दूर नही होती ...
न ही  भुलाई  जाती  है !

दहल  जाता  है दिल ...
ससुराल में सताई  जाती  है ?
उछलता  है मन बल्लियों.....
पलकों पे बिठाई  जाती है !

रोकर  दिल नहीं भरता ....
अतीत आगे  आता  है !
हर  बात  बचपन की ...
फिर  दोहराई जाती  है !

निकलते  हैं गठरी से ....
पुराने  वही  गुड्डे - गुड़िया !
किस्से जी उठते हैं फिर ....
लोरियाँ सुनाई जाती  हैं !

माँ  बनाती गोल मगर ...
तिरछी  उसे  भाती  है !
नाजुक  हाथ से अपने ...
बेटी  रोटी  बनाती  है !

कुछ  यादें कुछ ख़्वाब ...
 यूँ निकल  गई  सदियाँ  !
न  भूलती  है  बेटी और ...
न बेटी  भुलाई  जाती है !

बिदाई बस  रस्म समझिये ...
रस्म  तो  निभाई  जाती  है !
कलेजा  माँ  का छलनी ...
बेटी ना  भुलाई  जाती  है !
_____________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति