Wednesday 30 September 2015

संगीत चिकित्सा / music therapy













_______________ भारतीय  शास्त्रीय संगीत के विभिन्न राग तमाम रोगों में चिकित्सा का सार्थक माध्यम हैं,


 जैसे_
गांधार राग
_________ ये पित्त जन्य रोगों का शमन करता है , इस सन्दर्भ में जानकारी और भी हैं , जिन्हें  मैं वक्त मिलते ही टिप्पणी या post edit के माध्यम से देती रहूंगी .
________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति



7 comments:

  1. सात स्वरों के बारे में अबुल फजल ने कहा है कि निम्न जठर, गला और मास्तिष्क का शीर्ष-इन अंगों में भगवत प्रभाव से बाईस नाड़िया (रग) विस्तृत हैं। नाभि देश से वायु प्रवाह मनोहर गति से उत्थित होता है एवं इसकी विस्तार गत प्रकृति के आधिक्य या मंथरता के अनुसार यह आवाज जाग्रत होती है। अबुल फजल ने 22 नाड़ियों में सात स्वरों की व्याप्ति बताई जो इस प्रकार है -

    1. षड्ञ (सा) मयूर की आवाज से प्रतिस्ठित हुआचतुर्थ नाड़ी से इसका अभ्यूदय।

    2. त्रषभ (रे) पपीहा (चातक) की आवाज से सप्तदश से नवम् नाड़ी तक व्याप्ति।
    3. गान्धार (ग) बकरे की आवाज से गृहीता नवम् से त्रयोदश नाड़ी तक व्याप्ति।

    4. मध्यम (म) सारस की आवाज से गृहीत। त्रयोदश से सप्तदश नाड़ी तक व्याप्ति।

    5. पंचम (प) कोयल के सुरीले कंठ से गृहीत सप्तदश नाड़ी से विशं नाड़ी तक व्याप्ति।

    6. धैवत (ध) मेढ़क की आवाज से गृहीत। विशं से द्वाविशं नाड़ी तक व्याप्ति।

    7. निषाद (नि) हस्ति की आवाज से परिकल्पित द्वाविशं से परवर्ती मंउली की तृतीय पर्यन्त।10

    पं. अहोबल ने भी 'संगीत -पारिजात' में भारतीय संगीत की 22 श्रृतियों का मनुष्य के शरीर की 22 धमनियो से सम्बन्धित होने का वर्णन किया है।

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  2. राग संगीत का मुख्य उपादान स्वर है। स्वर सात है। इन सात स्वरों में से पांच स्वर विकृत भी होते हैं अतः शुद्ध विकृत मिलाकर कुल 12 स्वर होते हैं। स्वरों के कोमल-शुद्ध अवस्था के आधार पर ही अंसख्य रागों का निमार्ण होता है। प्रत्येक राग में लगने वाले स्वरो पर ही उस राग का स्वरूप निर्भर करता है। शास्त्रों में स्वरों के रंग, देवता, वर्ण, कुल, ऋषि इत्यादि समस्त बातों का वर्णन है। साथ ही स्वरों के रस व स्वभाव का भी वर्णन है जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। रोगों की प्रकृति के अनुसार ही स्वरों के प्रयोग का वर्णन है अथार्त् कौन सा स्वर किस प्रकृति को दूर करता है। डा0 प्रेम प्रकाश जी ने संगीत के सात स्वरो के देवता उत्पत्ति स्थान तथा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताया है। इनके अनुसार-

    -षड्ज (सा)
    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान नाभि प्रदेश है, देवता अग्नि है तथा यह स्वर पित्तज रोगों का शमन करता है।

    --ऋषभ (रे)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान हृदय प्रदेश है। इसके देवता ब्रह्मा है तथा यह स्वर कफ एवं पित्त प्रधान रोगों का शमन करता है।

    --गान्धार (ग)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान फेफड़ों में है, देवता सरस्वती है तथा यह स्वर पित्तज रोगों का शमन करता है।

    --मध्यम (म)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान कंठ है।इस स्वर के देवता महादेव हैं। यह स्वर वात और कफ रोगों का शमन करता है।

    --पंचम (प)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान मुख हैं, देवता लक्ष्मी हैं तथा यह कफ प्रधान रोगों का शमन करता है।

    --धैवत (ध)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान तालू एवं देवता गणेश हैं। यह स्वर पित्तज रोगों का शमन करता है।



    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान नाभि प्रदेश है, देवता अग्नि है तथा यह स्वर पित्तज रोगों का शमन करता है।

    --ऋषभ (रे)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान हृदय प्रदेश है। इसके देवता ब्रह्मा है तथा यह स्वर कफ एवं पित्त प्रधान रोगों का शमन करता है।

    --गान्धार (ग)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान फेफड़ों में है, देवता सरस्वती है तथा यह स्वर पित्तज रोगों का शमन करता है।

    --मध्यम (म)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान कंठ है।इस स्वर के देवता महादेव हैं। यह स्वर वात और कफ रोगों का शमन करता है।

    --पंचम (प)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान मुख हैं, देवता लक्ष्मी हैं तथा यह कफ प्रधान रोगों का शमन करता है।

    --धैवत (ध)

    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान तालू एवं देवता गणेश हैं। यह स्वर पित्तज रोगों का शमन करता है।

    --निषाद (नि)
    इस स्वर का उत्पत्ति स्थान नासिका है। इसके देवता सूर्य है तथा यह स्वर वातज् रोगों का शमन है।


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  3. नई दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के ' बॉडी, माइण्ड क्लीनिक में आने वाले मरीजों का संगीत चिकित्सा के माध्यम से इलाज किया जाता है। इस क्लीनिक के प्रमुख डा. रविन्द्र कुमार तुली का कहना है कि - मानसिक रोगों के मरीजो पर संगीत का चमत्कारिक असर होता है। संगीत मेटाबॉलिज्म को तेज करता है, मांसपेशियों की उर्जा बढ़ाता है एवं श्वसन प्रक्रिया को नियमित करता है।21

    इसी प्रकार क्लीव लैण्ड में की गई एक खोज के अनुसार आपरेशन के बाद धीमा व सुरीला संगीत सुनने से दर्द कम महसूस होता है तथा राहत प्रदान करता है। दिल्ली की शोधरत श्रुति ने अपने शोध में पाया कि शुद्धस्वरों से दिमागी बिमारियों, रक्तचाप, आपरेशन के बाद का दर्द, माईग्रेन, तनाव इत्यादि में आराम मिलता है।22 यौगिक साधना हेतु स्वरों के उच्चारण का स्थायी प्रभाव व उपयोगी हमारे प्राचीन ग्रंथो से प्राप्त होता है। स्वरों को साधने से चित्र की एकाग्रता कायम होती है। योग-साधना में स्वर की महत्ता को 'ब्रह्मबिंदुपनिषद' में इस प्रकार दशार्या गया है-

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  4. स्वरेण सन्ध्यवेद योगम्।।

    अर्थात् योग की साधना स्वर से करनी चाहिये।

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  5. स्वर साधना एक प्रकार का शरीरिक व्यायाम है जो स्वयं में एक चिकित्सा है। यह एक प्राणायाम है जिससे शरीर के समस्त अवयवों का व्यायाम हो जाता है। गाने से फेफड़े व स्वर यंत्र मजबूत होते हैं तथा दमा, तपेदिक इत्यादि फेफडों की बीमारी होने काडर नहीं रहता साथ ही संगीत का प्रयोग फेफड़े, गले, कंठ, तालु जबड़े व अमाशय का फलप्रद व्यायामहै। इससे नाड़ियों का शोधन होता है, ज्ञान तंतु सजग होते है,ं आक्सीजन की वृद्धि होती है। तथा दीघार्यु प्राप्त होती है, हमारे में आयुर्वेद उल्लेखित है कि एक अच्छा चिकित्सक स्वर विज्ञान का भी ज्ञाता होना चाहिए क्योंकि संगीत में रोग शामक एवं स्वास्थ्य वर्द्धक शक्ति नीहित है जिसका प्रयोग रोगोपचार में कियाजाना अभिप्रेत था।प्रत्येक स्वर शरीर के विशिष्ट स्थल से उत्पन्न होता है और वही स्वर उस स्थल की व्याधि या स्वास्थ्य के प्रति उत्तरदायी है। रेकी चिकित्सा पद्धति के अनुसार सात स्वरों का सम्बन्ध शरीर में स्थित सात चक्रों से बताई गई हैयोगदर्शन के अनुसार सात स्वर शरीर में स्थित चक्रों तथा बिदु- विसर्ग स्थान को झंकृत करते हैं जो इस प्रकार है-

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  6. Bilkul sarthak swar sadhna, Sangeet adnyatmik sadhan hai -hridye ko khubsoorat bhav ke liye .Doctor Pratibha Sowaty, aap ke akhand gyan ki tareef ke liye koi shabad nhi , itni saral bhasha me saato suro ka darshan. Vigyan ne sangeet ki urza ko maan liya hai.Sangeet ke goonthe raag ko na kewal sub umar ke manus , por sub jeev jantu aur ped podhe bhi samajhte hain .Shat shat naman , Pratibha di .

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