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शब्द सहज हैं !
इन्सान / उनको ,
तोड़ता - मरोड़ता है !
अर्थ को पकड़कर ,
अनर्थ के व्दार पे,
जाके छोड़ता है !
बन चुकी पहले,
जो परिभाषा !
उससे की जाती है ,
मनमाफ़िक आशा !
गढ़ते हैं चक्रव्यह !
कोशिश / उसे ,
बदलने की !
अनर्थ के सहारे,
कुतर्क / लेकर,
छलने की !
अपेक्षा के रण में,
शब्द के अर्जुन ,
अर्थ में ,
खोजते हैं प्यार !
अनर्थ के कौरव,
परिभाषित क्रष्ण से,
खाते हैं मात ,
अंततः, जाते हैं हार !
--------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
Arth me khojte hain pyar, Anarth wale antata khate hi hai maar. Behtreen prastutu Dr Sowaty ji, pehle ban chuki pribhasha se kro mansik asha,m Lajwab prerna. AABHAR !
ReplyDeletethnx sir :)
ReplyDeleteशब्द हैं मौन, देते हैं उनको अर्थ अपनी इच्छा अनुसार...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार सर
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