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सुकूं दिल को मिलता नहीं ,
सम्मान दांव पर जब हो !
हाथ में मरहम दिखावा हो ,
नमक , घाव पर जब हो !
मुझे तैरना बखूब आता है ,
साहिल से देखने वालों !
कौन तब सवार होता है ,
छेद ,नाव पर जब हो !
तानाशाही की नहीं कायल ,
ज़माने को बता देना तुम !
बंदिश तोड़ ही देती हूँ सब ,
हाव - भाव पर जब हो !
रिश्ता अहमियत नहीं रखता,
चाहे............ खून मेरा ही हो !
तोहमतें उठाऊं ममता पर ?
या.......... लगाव पर जब हो !
मेरी सांसों का हिसाब नहीं ,
लुट गई ......ज़िंदगी यूँ ही !
रिश्तों की रवानगी कायम
मोलभाव ......पर जब हो !
चील -कौउवे - गिद्ध बाज़ ,
गौरैया पे रहम खाते हैं ?
सिद्धांत , मतलब परस्ती
लूटो 'खाव' पर जब हो !
__________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति
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