Thursday, 2 June 2016

तोड़ देती हूँ वो रिश्ता ....


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 सुकूं दिल को मिलता  नहीं ,
सम्मान दांव पर जब हो !
हाथ में मरहम दिखावा  हो ,
नमक , घाव  पर  जब  हो !

मुझे तैरना बखूब आता है ,
 साहिल से देखने वालों !
कौन तब सवार होता है ,
छेद  ,नाव  पर  जब हो !

तानाशाही की  नहीं कायल ,
ज़माने को बता देना तुम !
बंदिश तोड़ ही देती हूँ सब ,
हाव - भाव  पर  जब  हो !

रिश्ता अहमियत नहीं रखता,
चाहे............ खून मेरा ही हो !
तोहमतें उठाऊं  ममता पर ?
या.......... लगाव पर जब हो !

मेरी सांसों का  हिसाब नहीं ,
लुट गई ......ज़िंदगी यूँ ही !
रिश्तों  की रवानगी कायम
मोलभाव ......पर जब हो !

चील -कौउवे - गिद्ध बाज़ ,
गौरैया पे रहम खाते हैं ?
सिद्धांत , मतलब परस्ती 
लूटो 'खाव' पर जब हो !
__________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति

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