Tuesday, 5 May 2020

जब कुछ खो जाए ....

  सिक्का  जेब से कब  गिरा ...
 पता   ही ना चला !
रखा  तो याद  से  था ....
तो  भूली  कैसे  भला ?

याद  रखना  और भूल  जाना 
इनसानी   फ़ितरत  है !
बात   सिक्के  की हो ...
या फिर  रिश्ते   की !

इसी याद  और  भूल से 
कब ...कहाँ ...क्या -क्या 
खो  बैठे  हैं  हम ?
इसका  कोई   हिसाब   नहीं !

यूँ  हमें   हिसाब  खूब  आता  है 
2 और 2 का चार   नहीं  बनता 
जुगाड़   करते  हैं हमेशा
1 और 1 ग्यारह  हो  जाए !

मै भूल   गई  हूँ फिर ...
वो  सिक्के  वाली बात !
वो  रिश्ते  वाली  बात !
वो  खोने  वाली  बात !
दुःख होने  वाली  बात !

क्यूंकि इस  बार कुछ ...
खो  नहीं   रहा ...
खत्म   हो रहा  है सब !
धीरे - धीरे कभी   तेज़ !

जा  रही   है   जानें ....
खोखले   हो  रहे   दिलासे ...
फुसला   रहे   हैं   इलाज 
झूठी और सच्ची  खबरे 
सब  -कुछ  गड्ड-मड्ड !

दरमियान मीटर  भर  की दूरी 
और 50,000 का आंकड़ा 
इसमें  मृतक शुमार  नहीं है 
1500 वे  भी है जो  नही  हैं !

जाने क्यूँ  मुझे  लगता  है ...
वे  सब ....यहीं   हैं ....  
हाँ .......यहीं  कहीं   हैं ..  !
___________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति

4 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना ।

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    1. थैंक्स मधुलिका जी

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  2. अंतर्निहित भावनाओं को सलाम...!!

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