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सुनो कबीर !
रे सुन भई साधो !
कलयुग है !
---------------
मात -पिता को ,
अब मान नहीं है !
सब ही अंधे ,
कोई ज्ञान नही है !
----------------------
स्वार्थ की पूजा !
हर घर में होती !
देहरी तक आके ,
खुशियाँ रोतीं !
-----------------------
मन में अनबन !
झूठे बंधन !
दादा -दादी - दोहती !
नाती क्या पोती ?
------------------------
कोई रिश्ता ना दूजा !
पैसे की पूजा !
सीधी हैं खासी ,
सब उलटबासी !
----------------------------
सुन रे साधो !
राम -रहीम में धोखा !
सब कहते ,
भैय्या !पैसा ही चोखा !
---------------------------
सुनो कबीर !
अब तोता औ मैना ,
जीवनभर ,
लड़ते औ मरते !
सच में भैय्या ,
प्यार नही करते !
-----------------------
---------------------------jari -----hsesh bha 2.
सुनो कबीर !
रे सुन भई साधो !
कलयुग है !
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मात -पिता को ,
अब मान नहीं है !
सब ही अंधे ,
कोई ज्ञान नही है !
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स्वार्थ की पूजा !
हर घर में होती !
देहरी तक आके ,
खुशियाँ रोतीं !
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मन में अनबन !
झूठे बंधन !
दादा -दादी - दोहती !
नाती क्या पोती ?
------------------------
कोई रिश्ता ना दूजा !
पैसे की पूजा !
सीधी हैं खासी ,
सब उलटबासी !
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सुन रे साधो !
राम -रहीम में धोखा !
सब कहते ,
भैय्या !पैसा ही चोखा !
---------------------------
सुनो कबीर !
अब तोता औ मैना ,
जीवनभर ,
लड़ते औ मरते !
सच में भैय्या ,
प्यार नही करते !
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---------------------------jari -----hsesh bha 2.
wlcm
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक....
ReplyDeleteWow..kya baat likhi h aapne...gajab,,,n,nice image :-)
ReplyDeletethnx sona
DeleteR U Great Pratibha sowaty ji
ReplyDeletenice haykus..
ReplyDeletethnx neeraj
Deleteसार्थक ... सभी छंद गहरा अर्थ लिए ...
ReplyDeleteaap bhuta achaa likhtI hai.
ReplyDeletekabhI mere blog "unwarat.com" para aaiye.padne ke baad apane vichaara avshay vykta kIjiyegaa.
Vinnie
zurur / v p
Deleteachcha lagta hai jab koi kabir ko baar-baar rachta hai.
ReplyDeletethnx / isi bhane hm unhe yad karte hn :)
DeleteBahut achchhi rachnaen...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletethnx ओम सर
ReplyDeleteBahut achchhi rachnaen...
ReplyDeleteBahut achchhi rachnaen...
ReplyDeleteBahut achchhi rachnaen...
ReplyDeletethnx अंकित
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletelajvab
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया --
wlcm ravikar sr
Deleteसच कलयुग में क्या-क्या नहीं देखना पड़ता है ...आज के हालातों की सटीक अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक रचना ..
यूँ ही लिखती रहो ...
शुभकामनायें
bahut bahut aabhar kavita ji
Deletebehtareen choka
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteaaj se me bhi aa gai hu dr di
ReplyDeletekthin kam
ReplyDeleteगौरैया : डॉ. प्रतिभा स्वाति
ReplyDelete------------------------------------------------------
सचमुच / अब ,
वो नहीं दिखती !
अब कहाँ रहे ,
वो आंगन / चौपाल ?
गोधूली बेला में ,
रंभाते हुए बछड़े !
धूल उड़ाती गैय्या ,
शोर मचाते ग्वाल !
अरे !
मेरे पास / तो बस ,
कुछ यादें हैं !
बचपन की !
भुला दूँ / तो क्यूँ आख़िर ?
और याद रखूं / तो
इनका क्या करूं फिर ?
खोजती हूँ / रोज़
और / सहेजती हूँ चित्र !
और बुन देती हूँ !
कोई गीत / कहानी !
नई नस्ल के लिये !
जैसे संजोता है किसान ,
अच्छे बीज !
उम्दा फस्ल के लिये !
mujhe to apna blog khjna b mushkil lagta h kabi -kabi
ReplyDeletemujhe bhi reply kiya karo blog par
ReplyDeleteआ० बहुत अच्छी प्रस्तुति , लेकिन ये बातें मिथ्या भी हैं , क्योंकि , स्वयं शिव जी ने माता पार्वती से कहा था
ReplyDelete॥ उमा कहऊ मैं अनुभव अपना , सत् हरि: भजन जगत एक सपना ॥ , शिव चालीसा में भी एक जगह ये लिखा हैं , मात पिता भ्राता सब कोई संकट में पूंछत नहीं कोई , इसका अर्थ सही से गीता के जरिए समझ सकते हैं , जब अर्जुन के सामने रण में उसका पूरा परिवार उसके खिलाफ खड़ा था , तब भगवान कृष्ण ने उसको यही संदेश देकर उसके मोह का त्याग करवाया था , धन्यवाद
॥ जय श्री हरि: ॥
u r rt / आशीष भाई aye ek ' choka' rachna h ---------- isme writer badhya hota h , 5 ya 7 akshar ki vakya rachna k liye ! इसका दूसरा भाग , मे अब तक नहीं दे pai
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