Saturday, 9 November 2013

जल


                    जल की 1 बूंद और समन्दर में जितना फर्क है ! उतना  ही अंतर है ------ हाइकू  और चोका ,
रचनाओ में ! 
               लेकिन जिस तरह बूंद एक इकाई है , आधार  है , शुरुआत है , अनिवार्य है , उसके  महत्व को हम 
नकार नही सकते ! उसे सागर , नदिया, ताल, तलैया, किसी से भी , कभी जुदा नही कर सकते ! ठीक उसी तरह , हाइकू की प्रथम दो  पंक्तियाँ ----- हमे स्रजन का ,
वो सूत्र थमा कर जाती है , जिनसे हम काव्य में -- महाकाव्य का ताना बुन सकते हैं !
                      रच सकते हैं , इक़  नया  वितान !जहाँ 
हमारी कल्पना एक  ऊँची , अनुशासित उड़ान ले सकती है ! इसलिए एक विषय पर यदि 4 से ज्यादा हाइकू बनते  हों तब ' चोका ' रचना  की जानी चाहिए !
                      जैसे  तमाम बूंदें हो तब उन्हें कलश , गागर या समुचित पात्र में संचित करते हैं ! :)
                                thnx
                                          डॉ . प्रतिभा स्वाति 
' अपनी राय और लेटेस्ट पोस्ट का link देते जाइये plz '









15 comments:

  1. बहुत सुन्दर और शानदार

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  2. बहुत अच्छी सोच है आपकी , काफी प्रभावित करती हुईं , आपके अच्छे लेखन से प्रभावित होकर हम आपको प्रतिभाओं को समर्पित एक कोना में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं , कृपया ज्यादा जानकारी के लिए यह पोस्ट देखें -- A tribute to Damini
    धन्यवाद

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  3. Pratibha ji bahut hi achhi soch aur vichar hain apke. Thanks

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  4. प्रतिभा जी , हाइकू में मैंने महिषासुर बध की कहानी लिखा है ! कुल ११४ हाइकू पद बने\इसको हमने ३ भाग में पब्लिश किया ,शायद आपने नहीं देखा | उसपर एक नज़र डालकर बताएं कि इनको हाइगा में परिवर्तित कर सकते हैं कि नहीं|आभार .
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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  5. सरल, सुहानी व्याख्या ... हर विधा अपने आप में सम्पूर्ण ...

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