जल की 1 बूंद और समन्दर में जितना फर्क है ! उतना ही अंतर है ------ हाइकू और चोका ,
रचनाओ में !
लेकिन जिस तरह बूंद एक इकाई है , आधार है , शुरुआत है , अनिवार्य है , उसके महत्व को हम
नकार नही सकते ! उसे सागर , नदिया, ताल, तलैया, किसी से भी , कभी जुदा नही कर सकते ! ठीक उसी तरह , हाइकू की प्रथम दो पंक्तियाँ ----- हमे स्रजन का ,
वो सूत्र थमा कर जाती है , जिनसे हम काव्य में -- महाकाव्य का ताना बुन सकते हैं !
रच सकते हैं , इक़ नया वितान !जहाँ
हमारी कल्पना एक ऊँची , अनुशासित उड़ान ले सकती है ! इसलिए एक विषय पर यदि 4 से ज्यादा हाइकू बनते हों तब ' चोका ' रचना की जानी चाहिए !
जैसे तमाम बूंदें हो तब उन्हें कलश , गागर या समुचित पात्र में संचित करते हैं ! :)
thnx
डॉ . प्रतिभा स्वाति
' अपनी राय और लेटेस्ट पोस्ट का link देते जाइये plz '
बहुत सुन्दर और शानदार
ReplyDeletethnx
ReplyDeleteबहुत अच्छी सोच है आपकी , काफी प्रभावित करती हुईं , आपके अच्छे लेखन से प्रभावित होकर हम आपको प्रतिभाओं को समर्पित एक कोना में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं , कृपया ज्यादा जानकारी के लिए यह पोस्ट देखें -- A tribute to Damini
ReplyDeleteधन्यवाद
zurur ashish bhai
DeletePratibha ji bahut hi achhi soch aur vichar hain apke. Thanks
ReplyDeletewlcm sr
Deleteप्रतिभा जी , हाइकू में मैंने महिषासुर बध की कहानी लिखा है ! कुल ११४ हाइकू पद बने\इसको हमने ३ भाग में पब्लिश किया ,शायद आपने नहीं देखा | उसपर एक नज़र डालकर बताएं कि इनको हाइगा में परिवर्तित कर सकते हैं कि नहीं|आभार .
ReplyDeleteनई पोस्ट काम अधुरा है
मेरे दूसरे ब्लॉग पर कबीर/ग़ालिब(1-4)
ReplyDeleteकबीर/ग़ालिब(1-4)
ReplyDeleteआधुनिक हाईगा)
wah
ReplyDeleteसरल, सुहानी व्याख्या ... हर विधा अपने आप में सम्पूर्ण ...
ReplyDeletethnx digambar sr
ReplyDeleteचाँद
ReplyDelete100 % खेल
ReplyDelete100 % खेल
ReplyDelete