रुको सदी के साल सत्रवें ...
अरे ! अभी तुम जाओ मत !
साथ रहे हम बारह मास ...
दामन् यूँ झटकाओ मत !
बातें कितनी कहनी -सुननी ..
कितने काम अधूरे हैं !
संकल्प लिए थे आने पर ..
हुए कहाँ वो पूरे हैं !
नया साल ही चाहें सब ...
साल पुराना मुझको भाता !
इतने दिन जो साथ रहा ...
कैसे उससे तोडूं नाता ?
बातें सुनकर मुसकाते हो ...
अरे साल ! तुम क्यूँ जाते हो ?
कह दूँ सबको बात यही ?
गुपचुप मुझको समझाते हो :)
जाना -आना महज तमाशा..
बस ,कैलेंडर बदला जाता है !
तुम ही जाते -तुम ही आते ..
नहीं टूटता नाता है !
ज्यों जाते हैं सूर्य - चन्द्र ...
वही लौट फ़िर आते हैं !
समय -चक्र की गणना हेतु ..
"वर्ष "सहर्ष बदल जाते हैं !
मिथ्या जीवन का एक सत्य है ..
जो जाता है वो आता है !
काल सत्य है यही शाश्वत ..
सतत आगे बढ़ता जाता है !
सदियों के ये ठाठ - बाट हैं :)
कहो ,समय की बरसगाँठ है !
अहो ! समय की बरसगाँठ है !!
_________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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