आज फ़िर मुखर ....
मौन के संवाद हैं !
हुए विस्मृत तुझे ...
मुझे सब याद हैं !
भाव का अभाव ...
ज़ख्म को मरहम नहीं !
शुष्क है सम्वेदना ...
कामनाएँ कम नहीं !
शिकायतों के सिलसिले ...
समाप्त हो जाएँ समस्त !
कन्दराओं से निकल ....
हो नव -पथ प्रशस्त !
रचें नवीन कुछ ...
भूल जा बातें पुरानी !
रिक्त आकाश है ...
आ लिखें कोई कहानी !
भूलकर मत भूलना .....
शैशव की किलकारी - क्रंदन !
रिश्ते हैं चंदन ...
कर वन्दन या अभिनंदन !
हर सदी में क्यूँ .....
शिव ही पियें गरल !
अर्जुन ही के लिए ...
चक्रव्यूह क्यूँ हो सरल !
मां नहीं मिलाती .....
दूध में पानी कभी !
शिशु जानता सच ....
संतति भूलती सयानी सभी !
__________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
मौन के संवाद हैं !
हुए विस्मृत तुझे ...
मुझे सब याद हैं !
भाव का अभाव ...
ज़ख्म को मरहम नहीं !
शुष्क है सम्वेदना ...
कामनाएँ कम नहीं !
शिकायतों के सिलसिले ...
समाप्त हो जाएँ समस्त !
कन्दराओं से निकल ....
हो नव -पथ प्रशस्त !
रचें नवीन कुछ ...
भूल जा बातें पुरानी !
रिक्त आकाश है ...
आ लिखें कोई कहानी !
भूलकर मत भूलना .....
शैशव की किलकारी - क्रंदन !
रिश्ते हैं चंदन ...
कर वन्दन या अभिनंदन !
हर सदी में क्यूँ .....
शिव ही पियें गरल !
अर्जुन ही के लिए ...
चक्रव्यूह क्यूँ हो सरल !
मां नहीं मिलाती .....
दूध में पानी कभी !
शिशु जानता सच ....
संतति भूलती सयानी सभी !
__________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
अच्छा लगा, खुद को पढ़ना
ReplyDeleteExcellent 🙏🙏
ReplyDeleteThanks 🙏
Deleteअहा ! बहुत बहुत बधाई इस लेखन के लिए
ReplyDeleteThnx
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