रे पगली ....
तुम नहीं समझोगी !
कभी भी ...
सही मायने !
समझकर भी .....
न कह सकोगी !
न सह सकोगी !
बहरे समाज ने ..
बना दिया है ...
तुम्हे मूक ?
जानती हो , फ़िर भी ?
हक़ीकत ,
हाथी के दांतों की ......
"खाने के और ...
दिखाने के और "
पुरुष का मुंह __ हुंह !!!
"मुंह में राम...
बगल में छूरी "
कहानी है अधूरी !
आओ मिलकर ..
अब करें पूरी !
बदल रहा है पुरुष भी ...
आओ हम भी साथ दें :)
कह तो रहा है अब ...
कि इसने नहीं कहा ..
जो अब तक
हम सबने सहा ____
त्रिया चरित्रम ..
पुरुषस्य भाग्यम ?
अरे नहीं पगली !
पुरुषस्य भाग्यम ...
तस्य कर्म - फलम :)
________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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