Thursday 21 January 2016

मुझको याद नहीं...

 जीवन के इस ,
बीहड़ में !
मौन- मौन का ,
पहरा है !
आशाओं के,
मद्धिम दीपक !
अँधियारा बेहद,
गहरा है !

कितनी ही मैं ,
कोशिश कर लूँ,
अब होता कोई,
संवाद नहीं !
ओह ! मुझको जैसे,
कुछ भी याद नहीं .

शायद , वो सारे ,
ख़्वाब सुनहरे ,
मेरे थे !
शायद ,महक भरे,
रैन- सबेरे,
 मेरे थे  !

पर तम के ,
इस घेरे में!
उहापोह के,
फेरे में !
सोच यही ,
बस रहती है -
जीवन के इन,
जंजालों से ,
कोई भी ,
आजाद नहीं !

हाय , मुझको अब
रहता कुछ भी याद नहीं !

घनघोर , निराशा के
काले पल हैं ?
छूटे ,जीवन के 
सम्बल हैं ?

जीवन की बस्ती ,
उजड़ गई ?
कुछ भी क्या,
आबाद नहीं ?

सच, कहती हूं,
मुझको ,कुछ भी याद नहीं !
कुछ भी.............याद नहीं !
______________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

4 comments:

  1. Ati bhavuk hridye ke sanvaad. ISS SANSAR ME WAHI MANUS APNE KARYE ME SAFAL HOTE HAIN, JO APNI PRISTHITYO KO ANUKOOL BNA LETE HAIN AUR AGAR AISA NHI HO PATA TOU APNE ANUKOOL PRISTHITYO KO PAIDA KER LEYE HAIN..One popular proverb by a english Bard --Life begins at end of one,s comfort zone .Asha jeevan ki dori he , ise khatam mut kero, kiu ki zindagi me dhup chhanv tou ati rehti he ,

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  2. यद्यपि यह आसान नहीं लेकिन यादों के बोझ को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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