तेरे - मेरे- इसके -उसके,
जाने कितने किस्से हैं !
सब रहते दिल में मेरे,
सबके अपने हिस्से हैं !
पर अब भी मेरे दिल का ,
इक कोना कैसे ख़ाली है ?
आज मिली फुर्सत मुझको,
नज़र उसीपर डाली है !
भटक रहे हैं जाने कितने,
सपने आकुल बसने को !
और ख्वाहिशों की डोरी,
व्याकुल कोना कसने को !
मुझे लगा ये खालीपन ,
कुछ-कुछ अम्बर जैसा है!
टाकुंगी मैं चाँद यहाँ पर,
' जो'भाता मुझे हमेशा है !
------------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
Dil ko chhoo gayi yeh meethi rachna .. Muskrahte baante raho sda hridye ki khwayesho se
ReplyDeletethnx :)
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मौत का व्यवसायीकरण - ब्लॉग बुलेटिन" , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया :)
Deletebahut badhiya line likha hai apne
ReplyDeleteSelf Publisher India
thnx :)
Delete.
ReplyDelete06437034
ReplyDeletewah
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