Saturday 16 December 2017

भूलकर मत भूलना

 आज  फ़िर मुखर ....
मौन  के  संवाद  हैं !
हुए  विस्मृत  तुझे ...
मुझे सब  याद  हैं !

भाव  का  अभाव ...
ज़ख्म को  मरहम  नहीं !
शुष्क  है सम्वेदना ...
कामनाएँ  कम  नहीं !

शिकायतों  के सिलसिले ...
समाप्त हो  जाएँ समस्त !
कन्दराओं  से  निकल ....
हो नव -पथ  प्रशस्त !

रचें  नवीन  कुछ ...
भूल  जा  बातें  पुरानी !
रिक्त आकाश  है ...
आ  लिखें  कोई  कहानी !

भूलकर   मत  भूलना .....
शैशव की किलकारी - क्रंदन !
रिश्ते हैं  चंदन ...
कर  वन्दन या अभिनंदन !

हर  सदी  में क्यूँ .....
शिव  ही  पियें  गरल !
अर्जुन  ही के लिए ...
चक्रव्यूह  क्यूँ  हो सरल !

मां  नहीं  मिलाती .....
दूध में  पानी  कभी  !
शिशु जानता सच ....
संतति भूलती  सयानी सभी !
__________________________ डॉ. प्रतिभा  स्वाति



5 comments:

  1. अच्छा लगा, खुद को पढ़ना

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  2. Excellent 🙏🙏

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  3. अहा ! बहुत बहुत बधाई इस लेखन के लिए

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