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खिलता है यूँ नागफनी...
वो मौसम है .... मेरे दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है ! जैसे कोई मौसम है , जो रोज़ बदलता है ! इक गुनाह माफ़ करती हूँ , आ...

मेरी 7 कविताएँ u tube पर
- my vdo (19)
Sunday, 30 April 2017
Saturday, 29 April 2017
अकेला कोई नहीं ......
:)
देखा जाए तो बस दो ही अहसास हैं ,..... मुख्य ! ख़ुशी और गम ! बाकी तो सब सेकेंड्री हैं :) निर्भर हैं ... प्रतिक्रिया हैं .... अस्थाई हैं .... :)
आप सहमत न भी हों ....... तब भी बात के साथ आपकी असहमति होगी ..... कुल मिलाकर साथ बना रहेगा :)
"साथ " _______ ये साथ निहायत ज़ुरूरी है ! अकेला कुछ नहीं होता ! एक प्रतीति .... एक भ्रम .... एक भुलावा ... एक दम्भ .... एक पीड़ा ... जो हमे उकसाती है ये कहने को की हम अकेले हैं ! हम अकेले हो ही नही सकते ! इन्सान यदि इन्सान के साथ न हो ... ना दिखे तो क्या अकेले हो गए ?
हम अपनेआप में किसी भीड़ से कम नही :) ख़ाली दीखते हैं ...पर होते नही खाली ! अकेले दीखते हैं बस ....होते नहीं ! कोई भाव ..... कोई संकल्प ....कोई ख़्वाब .... कोई याद ....कोई गम .... कोई ख़ुशी .... एक सैलाब .... एक बवंडर ..... एक प्रवाह ..... निरंतर चलता है , हमारे साथ ..... हमारें भीतर .... हमारे आसपास ! सच मानें ..... आप अकेले नही हैं ..... चाहकर भी अकेले नहीं हो सकते !
जो अकेला दीखता है ..... वो शरीर है बंधू ! और शरीर नश्वर है .... माटी हैं :) दिल और दिमाग काबिज़ हैं ... इस माटी के खिलौने पर :)
हम तो परमात्मा का अंश हैं ! परमात्मा सागर है .... तब बूंद अकेली हो सकती है ? ईश्वर वो वृहद वृक्ष है ..... जहाँ हमारी औकात पात समान है ! हम कण मात्र हैं ! अणु ? नहीं .... परमाणु :) नहीं .... हम उस परमाणु के प्रोटान - न्यूट्रान - इलेक्ट्रान हैं :) हम अकेले नही हो सकते ! हमारी सामर्थ्य ही नहीं !
___________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
देखा जाए तो बस दो ही अहसास हैं ,..... मुख्य ! ख़ुशी और गम ! बाकी तो सब सेकेंड्री हैं :) निर्भर हैं ... प्रतिक्रिया हैं .... अस्थाई हैं .... :)
आप सहमत न भी हों ....... तब भी बात के साथ आपकी असहमति होगी ..... कुल मिलाकर साथ बना रहेगा :)
"साथ " _______ ये साथ निहायत ज़ुरूरी है ! अकेला कुछ नहीं होता ! एक प्रतीति .... एक भ्रम .... एक भुलावा ... एक दम्भ .... एक पीड़ा ... जो हमे उकसाती है ये कहने को की हम अकेले हैं ! हम अकेले हो ही नही सकते ! इन्सान यदि इन्सान के साथ न हो ... ना दिखे तो क्या अकेले हो गए ?
हम अपनेआप में किसी भीड़ से कम नही :) ख़ाली दीखते हैं ...पर होते नही खाली ! अकेले दीखते हैं बस ....होते नहीं ! कोई भाव ..... कोई संकल्प ....कोई ख़्वाब .... कोई याद ....कोई गम .... कोई ख़ुशी .... एक सैलाब .... एक बवंडर ..... एक प्रवाह ..... निरंतर चलता है , हमारे साथ ..... हमारें भीतर .... हमारे आसपास ! सच मानें ..... आप अकेले नही हैं ..... चाहकर भी अकेले नहीं हो सकते !
जो अकेला दीखता है ..... वो शरीर है बंधू ! और शरीर नश्वर है .... माटी हैं :) दिल और दिमाग काबिज़ हैं ... इस माटी के खिलौने पर :)
हम तो परमात्मा का अंश हैं ! परमात्मा सागर है .... तब बूंद अकेली हो सकती है ? ईश्वर वो वृहद वृक्ष है ..... जहाँ हमारी औकात पात समान है ! हम कण मात्र हैं ! अणु ? नहीं .... परमाणु :) नहीं .... हम उस परमाणु के प्रोटान - न्यूट्रान - इलेक्ट्रान हैं :) हम अकेले नही हो सकते ! हमारी सामर्थ्य ही नहीं !
___________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
Sunday, 23 April 2017
आईना ....
आख़िर ऐसी भी क्या बात है आईने में , कि गौरैया तक ..... वाह बात कैसे नहीं ,यही वो चीज़ है जो जाने क्या -क्या गुमाँ पैदा करती है :) और मुहावरों के लच्छे भी ख़ूब चले इसे लेकर ........ जब नहीं था तब ? पानी में प्रतिबिम्ब या फिर प्रियतमा की आँखों में देखे जाने का चलन था .... ऐसा पढ़ा -सुना है ! लेकिन उससे भी पहले ....बहुत पहले ... आदि मानव ,इस झमेले से परे था ! ख़ुश था ! सेहतमंद और बेफ़िक्र भी ! उसके पास अपनी भाषा थी .... इशारे थे ! शिक्षा नही थी ...न तकनीक थी .... ये सब धीरे - धीरे विकसित हुआ ...... हम अब भी विकासशील ही हैं .... तरक्की हमें कौनसा दिन दिखाकर ,कहाँ पहुचाएगी .ये भी नही मालूम ! एक जादुई आईने का ज़िक्र कथाओ में बड़ा सुना .... यदि उसकी इजाद हो जाए तो ..... आसानी होगी ? ना जी हम अब उस मुहाने पर हैं जहाँ ........... आसानी के आसार दूर तक नहीं :)

Saturday, 1 April 2017
और मैं ख़ामोश हूँ ......
सौ रंग, सब....
बिखरे पड़े हैं ...
और मै ख़ामोश हूँ !
रूठी -रूठी ....
दरिया अभी है ...
देखो सफ़ीने
चुप से खड़े हैं !
और मैं ........
ख़ामोश हूँ !!
_______________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
तन -निरोगी
और मन में
देखिये पीड़ा बड़ी है !
चाहती सुख की
समाधी .. !
यम- नियम में
गुज़री उम्र आधी !
इक मुसाफ़िर
सफ़र में खड़ी है !
आई हूँ जहाँ से
जाने की वहीं पर
ज़िद है , हडबडी है !
बात छोटी सी
आज लगती बड़ी है !
काज सब हुए पूरे
विदाई की घड़ी है !
मत मुझे आवाज़ देना
अब जल्दी बड़ी है ..
विदाई की घड़ी है !!
_________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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