_______________________
देकर
दो निवाले
दान में !
कुछ
पुण्य के
अरमान में !
चल पड़ा
इनसान यूँ !
पल रहा
अभिमान यूँ !
हाय / हम
देना
प्रकृति से
सीख लेते !
निरुपाय हम
कब तलक
इन्सान ही से
भीख लेते !
इक सदी से
चल रहा
रोना
गरीबी का सतत !
कौन / किसको
है मिटाता ?
पास किसके
इतना 'बखत ' !
चल रहा
जबसे धरा पर
अधिकार का
अभियान है !
इन्सान
कम ही बचे हैं
गरीबों की नसल
बचे धनवान हैं !
देना महज
पाप धोने के लिए है !
लेना /सतत
और लेने के लिए है !
हे प्रभु ,
संसार में बस
दो ही रिश्ते बचे हैं !
क्या ये इंसान
सचमुच
तुमने ही रचे हैं ?
_______________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
Satye vachan, sirf garib evm dhanwan --do hi jaati bachi hasin iss swarthi sansar me . Neki daan ka koi jarurat ya jajba hi nhi, lene wale bina ahsaan ke satut tatpor aur dene walo ka Ishwer ko khush kerne ka dhong . Insaniyut tou dhoonde por bhi nhi milti ..JHUKAYE KHUD KO NA JAB TAK; JHUKANA SAR HAI BEIMANI;; TARK KER DE KHUDI KO TOU KHUDA FIR NAZAR AATA HAI
ReplyDeleteआभार
ReplyDelete.
ReplyDelete